*"सुन्दर सी जिंदगी..."*
बेमतलब के चोचले पालने से बड़ा नहीं बना जाता है। चटक-मटक वाली जिन्दगी की एक खूबी है कि वो पलक झपकते ही लोगों की नज़रों में घर कर जाती है लेकिन उतनी ही जल्दी नज़रों से उतर भी जाती है। किफ़ायती अंदाज़ में भी महँगी सी जिन्दगी जी सकते हैं।
आपका मस्तिष्क उपजाऊ है तो वो आपकी सबसे बड़ी जायदाद है। आसमाँ के तारे तोड़ने की उलझनों में उलझने के बजाय, किसी बगिया में चंपा, चमेली और मोगरा को बिना तोड़े किसी शाम उनकी सुगन्ध में नहा लीजिए। किसी दिन शृंगार पेटी को एक तरफ सरकाकर कुछ विचारों से मन को सजाओ और खुले दिल से सफर पर निकलो। आपकी अज्ञानता भी लोगों का दिल जीत लेगी। आप के साथ बिताये पल को लोग लतीफ़े की तरह दूसरों को सुनायेंगे। सादगी वाला शृंगार दुनिया में बिखरा पड़ा है उसको बटोरने के लिए निखालिस शिशुओं की क्रीड़ाएँ देखो, ममत्व पट से पोंछे जा रहे आँसू देखो, बाबा के अरमानों को पूरा करने के लिए घर आँगन में टहलती हुई, अल्फाजों का रियाज़ करती हुई, बिटिया को देखो।
मटकी के पानी को पंचामृत के अंदाज़ में बड़ी नाजुकी से घूंट-घूंट पियो। पुराने एल्बम को निकालकर कुछ हीरे से दिखनेवाले चेहरों को याद करो। यादों की एक मूसलाधार झड़ी लग जायेगी। खुशी या गम के आँसू आँखों को इस कदर धो देंगे कि खुमारी का काजल फिर कभी आंखों पर जंचेगा ही नहीं।
मन का मन ही मन शृंगार करो। आपकी नज़रों में खटकने वाले तिलों को हटाओ मत। कुछ और भी छुपे हुए दिली रहस्य है उनको पहचान कर सादगी और अदब से निखारो। बहुमूल्य सादगी इतनी जादुई है कि आपके तिल भी कद्रदानों की कपोल कल्पना में आकाशीय पिण्डों से रहस्यमयी लगेंगे।
योग गुरू - डॉ. मिलिंद्र त्रिपाठी 🧘🏻♂️
(आरोग्य योग संकल्प केंद्र)