योग के 84 लाख आसनों मे से दैनिक जीवन मे बेहद उपयोगी प्रमुख योगासन -: लेखक योग गुरु डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी डायरेक्टर उज्जैन योग इंस्टीट्यूट 9977383800
आसन का अर्थ है मन को शांत करके शरीर को सुखमय स्थिति में रखना। दूसरे शब्दों में सुख पूर्वक, बिना कष्ट के, एक ही स्थिति में अधिक से अधिक समय तक रहना ही आसन है। योग का महत्व क्या है ? आज के समय मे यह बताने की आवश्यकता नही है क्योंकि आज हर कोई जानता है कि योग के लाभ क्या है । परंतु आज भी सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि वो कौन से योग आसान है जिन्हें हमे करना चाहिये । जिन्हें करने से हमे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ होगा । इंटरनेट की दुनिया मे योग का नाम लिखते ही अनेको वेबसाइड ,फोटो ,वीडियो पल भर में हमारे सामने आ जाते है । यही से दौर शुरू होता है भ्रम का जब आपके सामने अनेको तरह के आसान प्रस्तुत होते है तो आप सोच में पढ़ जाते है कि आखिर मुझे कौन से आसान करना चाहिय।
महर्षि पतंजलि के योगसूत्र के अनुसार,
"स्थिरसुखमासनम्"
(अर्थ : सुखपूर्वक स्थिरता से बैठने का नाम आसन है। या, जो स्थिर भी हो और सुखदायक अर्थात आरामदायक भी हो, वह आसन है। )इस प्रकार हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि आसन वह जो आसानी से किए जा सकें तथा हमारे जीवन शैली में विशेष लाभदायक प्रभाव डाले।
आसन का उददेश्य :
हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है की आसन का अभ्यास करने से शरीर में स्थैर्य ,आरोग्य व लाघवआता है।
व्याख्या करने पर स्पष्ट होता है स्थैर्य -शारीरिक,मानसिक स्थिरता ,आरोग्यता -निरोगता और
लाघव -हल्कापन
अर्थात शरीर में शारीरिक,मानसिक स्थिरता आती है आरोग्यता अर्थात विकार रहित होता है दोष सम अवस्था में आते है और हल्कापन आता है।
वर्तमान में आसन करने का एक मात्र उद्देश्य आरोग्यता प्राप्त करना है। शारीरिक मानसिक स्थिरता व लाघव पाने के लिए मनुष्य आसनो का अभ्यास नहीं कर रहा है उसका उद्देश्य तो विभिन्न प्रकार के विकार जो शरीर में इकठ्ठा हो गए है उन विकारो को दूर करना है।
परन्तु आज के दौर में तो यही से सबसे बड़े भ्रम का जन्म हो रहा है । एडवांश योग नाम से योग की आधुनिक शाखा का जन्म हो गया है । जिसको प्रचारित करने में बहुत बड़ा योगदान विदेशीयों का है । अब बहुत कठिन आसान करके अन्य नए योग साधकों को अपनी ओर आकर्षित करने का दौर चल पड़ा है । कठिन आसान करना जिसके फोटो और वीडियो से आमजन आश्चर्य चकित रह जाते है और करने वाले को तुरंत योग गुरु मान लिया जाता है । जबकि वास्तविकता में पंतजलि की आसानो को लेकर दी गयी परिभाषा में कठिन आसानो का वर्णन ही नही है । जब सामान्य आसनों को आसानी से करके शरीर को स्वास्थ्य बनाया जा सकता है तो आंख बंद करके आधुनिकता की दिशा में क्यो भागे ? अब बात आती है कि शास्त्रों में कौन से आसान बताए गए है ।
भगवान शिव ने शिव संहिता में चौरासी आसान ही प्रधान आसन बताये है और उन चौरासी आसन में से सिद्धासन,पद्मासन,उग्रासन,स्वस्तिकासन श्रेष्ट है। हठयोग प्रदीपिका में दिए गए १४ आसन कुक्कुटासन,स्वस्तिकासन,गोमुखासन,वीरासन,कूर्मासन,उत्तानकूर्मासन,धनुरासन,
मत्स्येन्द्रासन,पश्चिमोत्तानासन, मयूरासन,सिद्धासन,पद्मासन,सिंहासन,भद्रासन है।
और घेरण्ड सहिता में दिए गए ३२ आसन मुक्तासन,वज्रासन,मृतासन,गुप्तासन,मत्स्यासन,गोरक्षासन,उत्कटासन,संकटासन,उत्तानमण्डूकासन,
कुक्कुटासन,स्वस्तिकासन,गोमुखासन,वृक्षासन,मण्डूकासन,गरुड़ासन,वर्षासन,शलभासन,
मकरासन,उष्ट्रासन,वीरासन,कूर्मासन,उत्तानकूर्मासन,धनुरासन,मत्स्येन्द्रासन,पश्चिमोत्तानासन,
भुजंगासन,योगासन, मयूरासन,सिद्धासन,पद्मासन,सिंहासन,भद्रासन है।
हमारे लिए आवश्यक योगासन :-
हमारे ऋषि-मुनियों एवं योग शास्त्रों की परंपरा के अनुसार कुल 84 लाख आसन है। यह सभी आसन विभिन्न जीव जंतुओं के नाम से पहचाने जाते हैं। हम इनमें से बहुत ही कम आसनों के बारे में जानते हैं। इनमें से मात्र 84 आसन ही ऐसे हैं जिन्हें प्रमुख माना गया है। उनमें से भी वर्तमान में मात्र 20 आसन ही प्रसिद्ध हैं जिन्हें लोग आसानी से कर लेते है।
1 अर्ध चन्द्रासन-
आसन का अर्थ है मन को शांत करके शरीर को सुखमय स्थिति में रखना। दूसरे शब्दों में सुख पूर्वक, बिना कष्ट के, एक ही स्थिति में अधिक से अधिक समय तक रहना ही आसन है। योग का महत्व क्या है ? आज के समय मे यह बताने की आवश्यकता नही है क्योंकि आज हर कोई जानता है कि योग के लाभ क्या है । परंतु आज भी सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि वो कौन से योग आसान है जिन्हें हमे करना चाहिये । जिन्हें करने से हमे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ होगा । इंटरनेट की दुनिया मे योग का नाम लिखते ही अनेको वेबसाइड ,फोटो ,वीडियो पल भर में हमारे सामने आ जाते है । यही से दौर शुरू होता है भ्रम का जब आपके सामने अनेको तरह के आसान प्रस्तुत होते है तो आप सोच में पढ़ जाते है कि आखिर मुझे कौन से आसान करना चाहिय।
महर्षि पतंजलि के योगसूत्र के अनुसार,
"स्थिरसुखमासनम्"
(अर्थ : सुखपूर्वक स्थिरता से बैठने का नाम आसन है। या, जो स्थिर भी हो और सुखदायक अर्थात आरामदायक भी हो, वह आसन है। )इस प्रकार हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि आसन वह जो आसानी से किए जा सकें तथा हमारे जीवन शैली में विशेष लाभदायक प्रभाव डाले।
आसन का उददेश्य :
हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है की आसन का अभ्यास करने से शरीर में स्थैर्य ,आरोग्य व लाघवआता है।
व्याख्या करने पर स्पष्ट होता है स्थैर्य -शारीरिक,मानसिक स्थिरता ,आरोग्यता -निरोगता और
लाघव -हल्कापन
अर्थात शरीर में शारीरिक,मानसिक स्थिरता आती है आरोग्यता अर्थात विकार रहित होता है दोष सम अवस्था में आते है और हल्कापन आता है।
वर्तमान में आसन करने का एक मात्र उद्देश्य आरोग्यता प्राप्त करना है। शारीरिक मानसिक स्थिरता व लाघव पाने के लिए मनुष्य आसनो का अभ्यास नहीं कर रहा है उसका उद्देश्य तो विभिन्न प्रकार के विकार जो शरीर में इकठ्ठा हो गए है उन विकारो को दूर करना है।
परन्तु आज के दौर में तो यही से सबसे बड़े भ्रम का जन्म हो रहा है । एडवांश योग नाम से योग की आधुनिक शाखा का जन्म हो गया है । जिसको प्रचारित करने में बहुत बड़ा योगदान विदेशीयों का है । अब बहुत कठिन आसान करके अन्य नए योग साधकों को अपनी ओर आकर्षित करने का दौर चल पड़ा है । कठिन आसान करना जिसके फोटो और वीडियो से आमजन आश्चर्य चकित रह जाते है और करने वाले को तुरंत योग गुरु मान लिया जाता है । जबकि वास्तविकता में पंतजलि की आसानो को लेकर दी गयी परिभाषा में कठिन आसानो का वर्णन ही नही है । जब सामान्य आसनों को आसानी से करके शरीर को स्वास्थ्य बनाया जा सकता है तो आंख बंद करके आधुनिकता की दिशा में क्यो भागे ? अब बात आती है कि शास्त्रों में कौन से आसान बताए गए है ।
भगवान शिव ने शिव संहिता में चौरासी आसान ही प्रधान आसन बताये है और उन चौरासी आसन में से सिद्धासन,पद्मासन,उग्रासन,स्वस्तिकासन श्रेष्ट है। हठयोग प्रदीपिका में दिए गए १४ आसन कुक्कुटासन,स्वस्तिकासन,गोमुखासन,वीरासन,कूर्मासन,उत्तानकूर्मासन,धनुरासन,
मत्स्येन्द्रासन,पश्चिमोत्तानासन, मयूरासन,सिद्धासन,पद्मासन,सिंहासन,भद्रासन है।
और घेरण्ड सहिता में दिए गए ३२ आसन मुक्तासन,वज्रासन,मृतासन,गुप्तासन,मत्स्यासन,गोरक्षासन,उत्कटासन,संकटासन,उत्तानमण्डूकासन,
कुक्कुटासन,स्वस्तिकासन,गोमुखासन,वृक्षासन,मण्डूकासन,गरुड़ासन,वर्षासन,शलभासन,
मकरासन,उष्ट्रासन,वीरासन,कूर्मासन,उत्तानकूर्मासन,धनुरासन,मत्स्येन्द्रासन,पश्चिमोत्तानासन,
भुजंगासन,योगासन, मयूरासन,सिद्धासन,पद्मासन,सिंहासन,भद्रासन है।
हमारे लिए आवश्यक योगासन :-
हमारे ऋषि-मुनियों एवं योग शास्त्रों की परंपरा के अनुसार कुल 84 लाख आसन है। यह सभी आसन विभिन्न जीव जंतुओं के नाम से पहचाने जाते हैं। हम इनमें से बहुत ही कम आसनों के बारे में जानते हैं। इनमें से मात्र 84 आसन ही ऐसे हैं जिन्हें प्रमुख माना गया है। उनमें से भी वर्तमान में मात्र 20 आसन ही प्रसिद्ध हैं जिन्हें लोग आसानी से कर लेते है।
1 अर्ध चन्द्रासन-
इस आसन को करते समय शरीर की स्थिति अर्ध चंद्र जैसी हो जाती है इसलिए इसे अर्धचन्द्रासन कहते है. अर्ध का अर्थ होता है आधा और चंद्रासन अर्थात चंद्र के समान किया गया आसन. इस आसन को खड़े होकर किया जाता है. अर्धचन्द्रासन को अंग्रेजी में Half Moon Pose भी कहते है. यह आसन सामान्य स्ट्रेचिंग और बैलेंसिंग पोज़ है जो खासकर कमर के निचले हिस्से, पेट और सीने के लिए लाभदायक है. इस आसन को करने से तनाव दूर हो जाता है.
यह आसन सूर्य नमस्कार के अनुक्रम में से एक है| इस आसन को करने से आपका पाचन तंत्र सुधरता है। साथ ही यह माइग्रेन, निम्न रक्तचाप और डायरिया जैसी बीमारियों को भी सही करता है ।
लेकिन इसे करने के लिए आपका एनर्जी लेवल ज्यादा होना चाहिए, और फिर जब आप इस आसन को पूरी तरह से करेंगे आप एक सकारात्मक ऊर्जा से भर जायेंगे और आपके अंदर का तनाव और चिंता कम हो जाएगी ।
2 भुजंग आसन-
सबसे पहले अपने पेट के बल से लेट जाएं. अब अपने हथेलियों को अपने कंधे की सीध में ले कर आएं. इस दौरान अपने दोनों पांवों के बीच की दूरी को कम करें साथ ही पांव को सीधा तथा तना हुआ रखें. अब सांस भरते हुए बॉडी के अगले हिस्से को नाभि तक उठाएं.
इस दौरान ध्यान रखें कि अपनी कमर के ऊपर ज्यादा स्ट्रेच न आ पाए. अपनी क्षमता अनुसार अपनी इस अवस्था को बना कर रखें. योग का अभ्यास करते समय धीमे धीमे सांस भरें और फिर छोड़ें. शुरुआती मुद्रा में वापस आते समय एक गहरी सांस को छोड़ते हुए वापसी करें. इस तरह इस आसन का एक पूरा चक्र खत्म हुआ. इसे आप अपनी क्षमता अनुसार दोहराएं.
3. बाल आसन-
बाल का अर्थ है- शिशु या बच्चा, बालासन में हम एक शिशु की तरह वज्र आसन लेकर हाथों और शरीर को आगे की ओर झुकाते है. यह आसन बेहद आसान ज़रूर है मगर काफी लाभदायक भी है. कमर की मांसपेशियों को आराम देता है और ये आसन कब्ज़ को भी दूर करता है. मन को शांत करने वाला ये आसन तंत्रिका तंत्र को शांत करता है.
बालासन (शिशुआसन) करने की प्रक्रिया-
अपनी एड़ियों पर बैठ जाएं, एड़ी पर कूल्हों को रखें, आगे की ओर झुके और माथे को जमीन पर लगाएं. हाथों को शरीर के दोनों ओर से आगे की ओर बढ़ाते हुए जमीन पर रखें, हथेली आकाश की ओर (अगर ये आरामदायक ना हो तो आप एक हथेली के ऊपर दूसरी हथेली को रखकर माथे को आराम से रखें.). धीरे से छाती से जाँघो पर दबाव दें. स्थिति को बनाये रखें. धीरे से उठकर एड़ी पर बैठ जाएं और रीढ़ की हड्डी को धीरे धीरे सीधा करें. विश्राम करें.
आसान से लाभ -:
बालासन, शरीर की खोई हुई ऊर्जा को वापस लौटाने वाला और शांति देने वाला आसन है जो, शरीर को आराम और ताजगी देता है। इस आसन के अभ्यास के दौरान रीढ़ की हड्डी या स्पाइनल कॉलम में राहत मिलती है। बालासन शरीर में मांसपेशियों को राहत देता है और पीठ दर्द को दूर करने में मदद करता है, खासतौर पर तब जब ये दर्द कमर, गर्दन और कंधों में हो रहा हो।
बालासन के अभ्यास से घुटने में भी खिंचाव आता है और राहत मिलती है, इसी तरह, स्नायु या टेंडोंस (tendons), पैरों की मांसपेशियों के साथ ही जोड़ भी हील होते हैं और उन्हें आराम से चलाने में मदद मिलती है। चूंकि, ये आसन भ्रूण की आकृति बनाता है, इसलिए शरीर को इस आसन के दौरान उतना ही आराम मिलता है जितना भ्रूण को मां के गर्भ में मिलता है।
4 मार्जरी आसन
अपने घुटनों और हाथों के बल आएं और शरीर को एक मेज कई तरह बना लें. अपनी पीठ से मेज का ऊपरी हिस्सा बनाएं और हाथ और पैर से मेज के चारों पैर बनाएं. अपने हाथ कन्धों के ठीक नीचे, हथेलियां जमीन से चिपकी हुई रखें और घुटनों में पुट्ठों जितना अंतर रखें. गर्दन सीधी नजरें सामने रखें.
सांस लेते हुए अपनी ठोड़ी को ऊपर की ओर सर को पीछे की ओर ले जाएं, अपनी नाभि को जमीन की ओर दबाएं और अपनी कमर के निचे के हिस्से को छत की ओर ले जाएं. दोनों हिप्स को सिकोड़ लें. इस स्थिति को बनाएं रखें ओर लंबी गहरी सांसें लेते और छोड़ते रहें. अब इसकी विपरीत स्थिति करेंगे. सांस छोड़ते हुए ठोड़ी को छाती से लगाएं ओर पीठ को धनुष आकार में जितना उपर हो सके उतना उठाएं, हिप्स को ढीला छोड़ दें. इस स्थिति को कुछ समय तक बनाएं रखें और फिर पहले कि तरह मेजनुमा स्थिति में आ जाएं. इस प्रक्रिया को पाँच से 6 बार दोहराएं और विश्राम करें.
लाभ -: रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाने में ,पाचन क्रिया बेहतर ,
रक्त परिसंचरण में लाभ ,
पेट के वसा को कम करने के लिए ,तनाव दूर करने में यह बहुत मददगार है ।
5 नटराज आसन-
भगवान शिव के नाम पर इस आसन का नाम रखा गया है. शुरुआत में इसे करने में थोड़ा कठिनाई आ सकती है परंतु इसके नियमित अभ्यास से इसे आसानी से किया जा सकता है.
सबसे पहले आराम की मुद्रा में खड़े हो जाएं. शरीर का भार बाएं पैर पर स्थापित करें और दाएं घुटने को धीरे धीरे मोड़ें और पैर को जमीन से ऊपर उठाएं. दाएं पैर को मोड़कर अपने पीछे ले जाएं. दाएं हाथ से दाएं टखने को पकड़ें. बाएं बांह को कंधे की ऊँचाई में उठाएं. सांस छोड़ते हुए बाएं पैर को ज़मीन पर दबाएं और आगे की ओर झुकें. दाएं पैर को शरीर से दूर ले जाएं. सिर और गर्दन को मेरूदंड की सीध में रखें. इस मुद्रा में 15 से 30 सेकेण्ड तक बने रहें.
इससे आपका बॉडी बैंलेंस बहुत अच्छा होगा और आपका शरीर अधिक से अधिक लचीला बनेगा. इस आसन से हाथ- पैरों में रक्त संचार बेहतर होगा, नर्वस सिस्टम बेहतर होता है.
6 गोमुख आसन-
गोमुख आसन शरीर को सुडौल और सुदृढ़ बनाने वाला योग है. योग की इस मुद्रा को बैठकर किया जाता है.इस मुद्रा में मूल रूप से दानों हाथ, कमर और मेरूदंड का व्यायाम होता है.गोमुख आसन स्त्रियों के लिए बहुत ही लाभप्रद व्यायाम है.
पलथी लगाकर बैठें. अपने बाएं पैर को मोड़ कर बाएं तलवे को दाएं हिप्स के पीछे लाएं. दाएं पैर को मोड़कर दाएं तलवे को बाएं हिप्स के पीछे लाएं. अपने हथेलियों को पैरों पर रखें. हिप्स को नीचे की ओर हल्का दबाएं और शरीर के ऊपरी भाग को सीधा रखें एवं सिर को सीधा और सतुलित करें. बायीं कोहनी को मोड़ कर हाथों को पीछे की ओर ले जाएं. सांस खींचते हुए दाएं हाथ को ऊपर उठाएं. दायी कोहनी को मोड़ कर दाएं हाथ को पीछे की ओर ले जाएं. दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में जोड़ें. दोनों हाथों को हल्के से अपनी दिशा में खींचें.
गोमुखासन के लाभ
यह आसन करने से शरीर सुड़ोल,लचीला और आकर्षक बनता हैं।वजन कम करने के लिए यह आसन उपयोगी हैं।गोमुखासन मधुमेह रोग में अत्यंत लाभकारी हैं।
7. हलासन-
हलासन हलासन में शरीर को हल की मुद्रा में रखा जाता है.इस आसन के लिए शरीर का लचीला होना बहुत आवश्यक होता है. फर्श पर पीठ के बल सीधे लेट जाएं और अपने दोनों हाथों को भी बिल्कुल आराम की मुद्रा में जमीन पर सीधे रखें. लंबी सांस लेते हुए पेट की मांसपेशियों के सहारे अपने पैरों को फर्श से ऊपर उठाएं और दोनों पैरों को 90 अंश के कोण पर खड़े रखें. सामान्य रूप से लगातार सांस लेते हुए अपने कूल्हों और पीठ को हाथ की सहायता से फर्श से ऊपर उठाएं. अब अपने पैरों को सिर के ऊपर से ले जाते हुए 180 डिग्री के कोण पर मोड़े जब तक कि आपके पैरों की उंगलियां फर्श से नहीं छू जाती हैं. आपकी पीठ फर्श पर लंबवत होनी चाहिए. इस मुद्रा में होने में शुरू में आपको मुश्किल जरूर होगी लेकिन थोड़े प्रयत्न के बाद आप इसे आसानी से कर सकते हैं. इस प्रक्रिया को धीरे-धीरे और आराम से करें. लेकिन साथ में यह भी ध्यान रखें कि आपको अपने गर्दन पर दबाव नहीं डालना है ना ही इससे जमीन की ओर धक्का देना है. अब सामान्य अवस्था में आ जाएं और शरीर को थोड़ी देर आराम दें. सांस लेते रहें और रिलैक्स महसूस करें.
हलासन के लाभ
पाचन प्रणाली और प्रजनन प्रणाली को मजबूर बनाता हैं।पेट पर जमी अतिरिक्त चर्बी को कम करता हैं। ...मधुमेह के मरीजो के लिए लाभदायक हैं।गर्दन, कंधे, पेट, पीठ और कमर के स्नायु मजबूत बनते हैं।मेरुदंड मजबूत और लचीला बनता हैं।
8 सेतु बंध आसन
-
सेतु बांध योग मुद्रा से मेरूदंड लचीला होता है साथ ही गर्दन से तनाव भी दूर होता है. पीठ के बल लेट जाएं. घुटनों को मोड़कर तलवों को अच्छी तरह से ज़मीन पर टिकाएं. शरीर के दोनों तरफ बांहों को भूमि से लगाकर रखें. इस अवस्था में हथेलियां जमीन पर टिकी होनी चाहिए. सांस छोड़ते हुए रीढ़ की हड्डियों को खींचे और कमर को ज़मीन की ओर धीरे से दबाएं. गहरी सांस लेते हुए पैरों को जमीन की ओर दबाएं एवं पेडु को जितना हो सके ऊपर की ओर उठाएं. इस मुद्रा में 30 सेकेण्ड से 1 मिनट तक बने रहें. सांस छोड़ते हुए धीरे धीरे सामान्य अवस्था में लौट आएं.
लाभ:-
सेतुबंध आसन रीढ़ की सभी कशेरुकाओं को अपने सही स्थान पर स्थापित करने में सहायक है. ये आसन कमर दर्द को दूर करने में भी सहायक है. पेट के सभी अंग जैसे लीवर, पेनक्रियाज और आँतों में खिंचाव आता है. कब्ज की समस्या दूर होती है और भूख भी खुलकर लगती है.
9.कुर्सी आसान -:
कुर्सी आसन ( Chair Pose) का अभ्यास-
पहली विधि :-
सेतु बांध योग मुद्रा से मेरूदंड लचीला होता है साथ ही गर्दन से तनाव भी दूर होता है. पीठ के बल लेट जाएं. घुटनों को मोड़कर तलवों को अच्छी तरह से ज़मीन पर टिकाएं. शरीर के दोनों तरफ बांहों को भूमि से लगाकर रखें. इस अवस्था में हथेलियां जमीन पर टिकी होनी चाहिए. सांस छोड़ते हुए रीढ़ की हड्डियों को खींचे और कमर को ज़मीन की ओर धीरे से दबाएं. गहरी सांस लेते हुए पैरों को जमीन की ओर दबाएं एवं पेडु को जितना हो सके ऊपर की ओर उठाएं. इस मुद्रा में 30 सेकेण्ड से 1 मिनट तक बने रहें. सांस छोड़ते हुए धीरे धीरे सामान्य अवस्था में लौट आएं.
लाभ:-
सेतुबंध आसन रीढ़ की सभी कशेरुकाओं को अपने सही स्थान पर स्थापित करने में सहायक है. ये आसन कमर दर्द को दूर करने में भी सहायक है. पेट के सभी अंग जैसे लीवर, पेनक्रियाज और आँतों में खिंचाव आता है. कब्ज की समस्या दूर होती है और भूख भी खुलकर लगती है.
9.कुर्सी आसान -:
कुर्सी आसन ( Chair Pose) का अभ्यास-
पहली विधि :-
★ कुर्सी आसन को करने के लिए पहले दोनों पैरों को मिलाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं।
★ अपने एड़ी व पंजों को मिलाकर दोनों हाथों को सामने की ओर फैलाएं।
★ अब दोनों हाथों के बीच थोड़ी दूरी रखते धीरे-धीरे घुटनों को मुड़ते हुए इस स्थिति में बैठे कि शरीर का आकार कुर्सी की तरह बन जाए। ★ आसन की इस स्थिति में कमर, गर्दन व पीठ को बिल्कुल तानकर व सीधा रखें। इस स्थिति में कुछ देर रहें
★ फिर धीरे-धीरे ऊपर उठते हुए सीधे खड़े हो जाएं।
दूसरी विधि :-
★ इसके लिए पहले की तरह ही एड़ी व पंजों को मिलाकर सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं।
★ इसके बाद दोनों हाथों को दोनों बगल में कंधे की सीध में फैलाएं।
★ हथेलियों का रुख नीचे की तरफ रखें।
★ अब एड़ी को ऊपर उठाते हुए पंजों पर जोर देकर धीरे-धीरे दोनों घुटनों को बगल में फैलाते हुए नीचे झुकें।
★ कुर्सी की आकृति बनने पर कुछ समय तक इस स्थिति में रहें और पुन: वास्तविक स्थिति में आ जाएं।
कुर्सी आसन से लाभ-
★ कुर्सी आसन के निरंतर अभ्यास से घुटनों व पिण्डलियों का दर्द दूर होता है |
★ इस आसन से कमर शक्तिशाली बनती है।
★ यह आसन थकावट को दूर करता है इसलिए अधिक चलने तथा खड़े होकर काम करने वाले व्यक्तियों के लिए यह आसन लाभकारी है।
10 सुखासन-
सुखासन में दोनों पैरों को एक क्रॉस की मुद्रा में दबाकर रखा जाता है जिसे कमल मुद्रा भी कहते हैं. ध्यान के लिए यह उपयुक्त आसन होता है. समतल जमीन पर आसान बिछाकर पालथी मोड़कर बैठ जाएं. अपने सिर गर्दन और पीठ को सीधा रखें, उन्हें झुकाएं नहीं. कंधों को थोड़ा ढीला छोड़ें. दोनों हाथों को घुटनों पर तथा हथेलियों को ऊपर की और रखें. सिर को थोड़ा ऊपर उठाएं और आंखें बंद कर लें.अब अपना ध्यान अपनी श्वसन क्रिया पर लगाएं और लम्बी और गहरी सांस लेते रहें. इस आसन को कभी भी एकांत में बैठकर 5-10 मिनट तक कर सकते हैं. अगर आप आध्यात्मिक दृष्टि से यह योग कर रहे हैं तो पूर्व या उत्तर दिशा में इसे करें.
11. नमस्कार आसन-
नमस्कार आसन किसी भी आसन की शुरुआत में किया जाता है. ये काफी सरल है.
12 ताड़ासन-
सबसे पहले सीधे खड़े हो जाएं. फिर अपने दोनों पैर को आपस में मिलाकर रखें और दोनों हाथों को सीधा कमर से सटाकर रखें. इस वक्त आपका शरीर स्थिर रहना चाहिए. यानी कि आपके दोनों पैरो पर शरीर का वजन सामान होना चाहिए. अब धीरे-धीरे हाथों को कंधों के समानान्तर लाएं. अब दोनों हथेलियों की अंगुलियों को मिलाकर सिर के ऊपर ले जाएं. अब सांस भरते हुए अपने हाथों को ऊपर की ओर खींचिए, जब तक आपको कंधों और छाती में खिंचाव महसूस नहीं होने लगे. इसी वक्त पैरों की एड़ी को भी ऊपर उठाएं और सावधानी से पंजों के बल खड़े हो जाएं. अब फिंगर लॉक लगाकर हाथों के पंजों को ऊपर की ओर मोड़ दें. इस वक्त आपकी गर्दन सीधी होनी चाहिए और हथेलियाँ आसमान की ओर होना चाहिए. ध्यान रखें कि आपकी पैरों की अंगुलियों पर शरीर का संतुलन बना रहे. कुछ देर इस स्थिति में रुकने के बाद सांस छोड़ते हुए हाथों को वापस सिर के ऊपर ले आएं. धीरे धीरे एड़ियों को भी भूमि पर टिका दें और दोनों हाथों को भी नीचे लाते हुए कमर से सटाकर पहले वाली स्थिति याने की विश्राम मुद्रा में आ जाएं. इस आसन को नियमित कम से कम 10 बार करें.
13 कटि चक्रासन :-
कटि का अर्थ कमर अर्थात कमर का
चक्रासन। उक्त आसन में दोनों भुजाओं, गर्दन तथा कमर का व्यायाम होता है
इसीलिए इसे कटि चक्रासन कहते हैं। इस आसन के और भी कई नाम हैं। यह आसन खड़े होकर
किया जाता है।
विधि : पहले सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाएँ। फिर दोनों पैरों में लगभग एक फीट की दूरी रखकर खड़े हो जाएँ। फिर दोनों हाथों को कन्धों के समानान्तर फैलाते हुए हथेलियाँ भूमि की ओर रखें।
फिर बायाँ हाथ सामने से घुमाते हुए दाएँ कंधे पर रखें। फिर दायाँ हाथ मोड़कर पीठ के पीछे ले जाकर कमर पर रखिए। ध्यान रखें की कमर वाले हाथ की हथेली ऊपर ही रहे। अब गर्दन को दाएँ कंधे की ओर घुमाते हुए पीछे ले जाएँ। कुछ देर इसी स्थिति में रहें।
लाभ : यह कमर, पेट, कुल्हे, मेरुदंड तथा जंघाओं को सुधारता है। इससे गर्दन और कमर में लाभ मिलता है। यह आसन गर्दन को सुडोल बनाकर कमर की चर्बी घटाता है। शारीरिक थकावट तथा मानसिक तनाव दूर करता है।
14 कोणासन-
विधि : पहले सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाएँ। फिर दोनों पैरों में लगभग एक फीट की दूरी रखकर खड़े हो जाएँ। फिर दोनों हाथों को कन्धों के समानान्तर फैलाते हुए हथेलियाँ भूमि की ओर रखें।
फिर बायाँ हाथ सामने से घुमाते हुए दाएँ कंधे पर रखें। फिर दायाँ हाथ मोड़कर पीठ के पीछे ले जाकर कमर पर रखिए। ध्यान रखें की कमर वाले हाथ की हथेली ऊपर ही रहे। अब गर्दन को दाएँ कंधे की ओर घुमाते हुए पीछे ले जाएँ। कुछ देर इसी स्थिति में रहें।
लाभ : यह कमर, पेट, कुल्हे, मेरुदंड तथा जंघाओं को सुधारता है। इससे गर्दन और कमर में लाभ मिलता है। यह आसन गर्दन को सुडोल बनाकर कमर की चर्बी घटाता है। शारीरिक थकावट तथा मानसिक तनाव दूर करता है।
14 कोणासन-
कोणासन करने में जितना आसान है, शरीर के लिए उतना ही लाभकारक भी है. पैरों के बीच में 2 फ़ीट का अंतर रखें. दोनों पैर पर बराबर भार संतुलित करें. श्वास लेते हुए दोनों हाथों को फैलाते हुए सिर के ऊपर ले जाएं और हथेलियों को जोड़ें. अंगलियो को आपस में जोड़ कर गुम्बदनुमा अवस्था में हाथो को रखें. ध्यान रहे कि हाथ कान से छूते हुए जाएं. श्वास बाहर छोड़ते हुए दाहिने ओर झुकें. यह ध्यान दें कि हाथ कोहनियों से मुड़े नहीं. ज़मीन पर पैर से दबाव बनाए रखें. श्रोणि बहिने और रहें. इस स्थिति में बने रहें. शरीर में झुकते हुए खिंचाव बनाए रहें. इस स्थिति में रहते हुए गहरी श्वास लें और छोड़ें. श्वास लेते हुए पुनः सामान्य स्थिति में खड़े हों. श्वास छोडते हुए दोनों हाथ नीचे लाएं. बाएं ओर यही प्रक्रिया दोहराएं.
15 उष्ट्रासन-
"उष्ट्र" एक संस्कृत भाषा का शब्द है और इसका अर्थ ऊंट होता है. उष्ट्रासन को अंग्रेजी में “Camel Pose” कहा जाता है। उष्ट्रासन एक मध्यवर्ती पीछे झुकने-योग आसन है जो अनाहत (ह्रदय चक्र) को खोलता है. इस आसन से शरीर में लचीलापन आता है, शरीर को ताकत मिलती है तथा पाचन शक्ति बढ़ जाती है.
मैट पर घुटने के सहारे बैठ जाएं और कुल्हे पर दोनों हाथों को रखें. घुटने कंधो के समानांतर हो तथा पैरों के तलवे आकाश की तरफ हो. सांस लेते हुए मेरुदंड को पुरोनितम्ब की ओर खींचे जैसे कि नाभि से खींचा जा रहा है. गर्दन पर बिना दबाव डालें तटस्थ बैठे रहें. इसी स्थिति में कुछ सांसे लेते रहें. सांस छोड़ते हुए अपने प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं. हाथों को वापस अपनी कमर पर लाएं और सीधे हो जाएं.
16 वज्रासन-
इस आसन के अभ्यास से शरीर मजबूत बनता है। यह एक साधनात्मक मुद्रा हैं। यह एक मात्र ऐसा आसन है जिसे खाने के बाद भी कर सकते है। इस आसन को दिन या शाम दोनों वक्त कर सकते हैं. वज्रासन करने के लिए किसी साफ़ समतल जगह पर दरी बिछाएं.
फिर इस पर घुटनों के बल बैठे तथा पंजों को पीछे फैलाकर एक पैर के अंगूठे को दूसरे अंगूठे पर रख दें. इस मुद्रा में आपके घुटने पास-पास किन्तु एड़ियां अलग-अलग होनी चाहिए. आपका नितम्ब दोनों पंजो के बिच में होना चाहिए और एड़ियां कूल्हों की तरफ. अब अपनी हथेलियों को घुटनो पर रखें. आप अपनी क्षमता के अनुसार वज्रासन का अभ्यास कीजिए. बाद में वापस सामान्य अवस्था में आ जाएं. वज्रासन करने के लिए भोजन के बाद पहले 5 मिनट का समय लें, फिर इसे करें.
17 वृक्षासन-
वृक्षासन का अर्थ है वृक्ष के समान मुद्रा. इस आसन को खड़े होकर किया जाता है. नटराज आसन के समान यह आसन भी शारीरिक संतुलन के लिए बहुत ही लाभप्रद है
वृक्षासन करने के लिए सीधा तनकर खड़े हो जाइए. शरीर का भार बाएं पैर पर डालिए और दांए पैर को मोड़िए. दाएं पैर के तलवे को घुटनों के ऊपर ले जाकर बाएं पैर से लगाइए. दोनों हथेलियों को प्रार्थना मुद्रा में छाती के पास लाइए. अपने दाएं पैर के तलवे से बाएं पैर को दबाइए. बाएं पैर के तलवे को ज़मीन की ओर दबाइए. सांस लेते हुए अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जाइए. सिर को सीधा रखिए और सामने की ओर देखिए. इस मुद्रा में 15 से 30 सेकेण्ड तक बने रहिए. दोनों तरफ इस मुद्रा को 2 से 5 बार दुहराइये.
18 दंडासन
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दंडासन करने के लिए सबसे पहले किसी साफ-स्वच्छ स्थान पर कंबल आदि बिछा लें. अब सीधा तन कर बैठ जाइये और दोनों पैरों को चहरे के समानान्तर एक दूसरे से सटाकर सीधा रखें. सिर को बिलकुल सीधा रखें. अपने पैरों की उंगलियों को अंदर की ओर मोड़ें और तलवों को बाहर की ओर धक्का दें.
19 अधोमुखी श्वान आसन-
अधोमुख स्वान आसन एक कुत्ते (श्वान / स्वान) की तरह सामने की ओर झुकने का प्रतीकात्मक है इसलिए इसे अधोमुख स्वान आसन कहते हैं.
अपने हाथों और पैरों के बल आ जाएं. शरीर को एक मेज़ की स्थिति में ले आएं. आपकी पीठ मेज़ की ऊपरी हिस्से की तरह हो और दोनों हाथ और पैर मेज़ के पैर की तरह. सांस छोड़ते हुए कमर को ऊपर उठाएं. अपने घुटने और कोहनी को मजबूती देते हुए सीधे करते हुए) अपने शरीर से उल्टा v आकार बनाएं. हाथ कंधो के जितने दूरी पर हों. पैर कमर के दूरी के बराबर और एक दूसरे के समानांतर हों. पैर की उंगलिया बिल्कुल सामने की तरफ हों. अपनी हथेलियों को जमीन पर दबाएं, कंधों के सहारे इसे मजबूती प्रदान करें. गले को तना हुआ रखते हुए कानों को बाहों से स्पर्श कराएं. लम्बी गहरी श्वास लें,अधोमुख स्वान की अवस्था में बने रहें. अपनी नज़रें नाभि पर बनाए रखें. श्वास छोड़ते हुए घुटने को मोड़े और वापस मेज़ वाली स्थिति में आ जाएं. विश्राम करें.
20 शवासन-
इसे करते समय आपको रिलैक्स महसूस करना है. अब अपनी पीठ के सहारे लेट जाएं और ध्यान रखे की इस अवस्था में आपके पैर ज़मीन पर बिल्कुल सीधे होने चाहिए. अपने दोनों हाथों को शरीर से कम से कम 5 इंच की दूरी पर रखें. हाथों को इस तरह रखे कि दोनों हाथ की हथेलियां आसमान की दिशा में हो. अब शरीर के हर अंग को आपको ढीला छोड़ना है, और आँखों को भी बंद करना है. हल्की-हल्की साँसे लें. इस वक्त आपका पूरा ध्यान श्वांसों पर होना चाहिए. मन में दूसरे किसी भी विचार को आने ना दें. इस आसान को करते वक्त यदि आपको कमर या रीढ़ में किसी प्रकार की परेशानी महसूस होती है तो घुटने के नीचे कम्बल या तकिया रख सकते हैं.