अवसाद का अंतिम चरण है आत्महत्या ,जीवन प्रबन्धन में श्रीमद भगवत गीता की भूमिका Mental stress and suicide 

अवसाद का अंतिम चरण है आत्महत्या ,जीवन प्रबन्धन में श्रीमद भगवत गीता की भूमिका  - : 

लेखन एवं संकलन मिलिन्द्र त्रिपाठी 

क्या इस दुनिया मे जैसा हम चाहते है सब वैसा हो सकता है ? उतार चढ़ाव जिदंगी का नियम है आज जो नीचे गया है वो ऊपर अवश्य आएगा । और जो ऊपर गया है एक न एक दिन वो नीचे जरूर आएगा । जैसे सूर्य स्थिर नही है चन्द्र स्थिर नही है तो मनुष्य की परिस्थितियां कैसे स्थिर हो सकती है ? आत्म हत्या वैसे यह शब्द गलत है आत्मा की कभी हत्या नही हो सकती है लेकिन यह शब्द प्रचलन में है । देह हत्या जरूर हो सकती है लेकिन आत्म हत्या संभव ही नही । गीता में भगवान ने कहां है कर्म कर फल की इच्छा मत कर यह शब्द हमे कंठस्थ याद है लेकिन जीवन मे हम इसे आत्मसात नही करते है । 
भगवान पर भरोसा रखो तो कितनी भी मुश्किल में आप क्यों न हो आपको वे राह अवश्य दिखाएंगे। भगवान जानने की चीज नहीं है, मानने की चीज है। आप कोई भी काम करने जा रहे हैं तो एक बार मन में आवाज आती है कि यार तुम गलत कर रहे हो फिर संसार की आवाज आती है कि गलत काम कुछ नहीं है। संसार की आवाज उस अंतर आत्मा की आवाज दबा देती है। आपने मनुष्य जन्म लिया है आपके पास दिमाग है। सही व गलत का फैसला आपको ही करना है। 

प्रभु कहते है कि 
तू करता वही है जो तू चाहता है,
पर होता वही है जो मैं चाहता हूँ,
तू कर वही जो मैं चाहता हूँ,
फिर होगा वही जो तू चाहता है !!

फिर केवल चार लाइन की यह बात हम क्यो नही समझ पा रहें है । सोचकर देखिए जब आत्महत्या कोई करता है फिर उसकी बॉडी का पोस्टमार्टम होता है बड़े बड़े धागों से सिला हुआ शरीर जब आपके घर वालो के सामने जाता होगा उनपर क्या बीतती होगी । सुशांत सिंह राजपूत ने सुसाइड किया लेकिन उनके पिता की हालत पर गौर कीजिए वो बदहवास है चल नही पा रहें है घर वालो के फेस देखिए आप विचलित हो जायेगे । दुनिया मे बेहद गरीब लोगों ने लॉक डाउन में एक समय का भोजन करके नमक चावल मिलाकर खाये ओर जीवन जिया । लेकिन बेहद संघर्ष में हजारों किमी पैदल चल लिए लेकिन जिंदगी की जंग लड़ी उससे घबरा कर भागे नही । में कहूंगा भारतीय संस्कृति बहुत अच्छी है उसका पालन करो तो आप मानोगे नही लेकिन विदेशी हमारी श्रीमद भागवत गीता पर रिसर्च करके उसे लाइफ मैनेजमेंट नाम से पढ़ रहे है । हम ऊपर वाले को स्वयं को समर्पित करें सोचे वो जो कर रहा है ठीक कर रहा है । किसी पाप का फल हमे किसी समस्या के रूप में मिल रहा है उसे स्वीकार करें । फिर सोचे कि हमारा है क्या इस दुनिया मे क्या लेकर आये थे और क्या लेकर जाना है सब यही की यही रह जाना है तो ऐसी क्षणभंगुर वस्तुओं के लिए देह का त्याग करना बेहद कायराना हरकत है । अक्सर, आत्महत्या कई कारकों से बनी एक जटिल स्थिति की प्रतिक्रिया है और ये किसी एक अकेली घटना की वजह से होने वाली प्रतिक्रिया नहीं ।
आत्महत्या का किसी व्यक्ति की संपन्नता या विपन्नता से कोई संबंध नहीं है। इन दिनों तो हर आयु वर्ग में भी आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। आए दिन आप ऐसी खबरें पढ़ते-देखते होंगे कि किसी परेशानी से आजिज आकर परिवार के सदस्यों ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली या फिर किसी व्यक्ति विशेष ने आत्महत्या की या फिर उसने इसका प्रयास किया। मौजूदा दौर में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण तनाव है। अगर किसी को मानसिक विकार या मानसिक रोग है तो वह व्यक्ति खुदकुशी करने का प्रयास कर सकता है। खुद का जीवन नष्ट करने की स्थिति को खुदकुशी (आत्महत्या) कहा जाता है। आत्महत्या के विचार आने की समस्या से पीड़ित व्यक्ति को खुद का जीवन नष्ट करने के विचार आने लगते हैं, इसके साथ-साथ इस दौरान उसको डिप्रेशन और बिहेवियरल बदलाव भी महसूस होने लगते हैं।डिप्रेशन में पीड़ित व्यक्ति में काम करने की इच्छा खत्म हो जाती है। पीड़ित व्यक्ति के मन में हीन भावना व्याप्त हो जाती है। व्यक्ति को यह महसूस होता है कि जीवन जीने से कोई फायदा नहीं है। वह हताश और असहाय महसूस करता है। ऐसी दशा में पीड़ित शख्स आत्महत्या की कोशिश कर सकता है।खुदकुशी का विचार आना एक सामान्य समस्या है और ज्यादातर लोग इसे तब महसूस करते हैं, जब वे तनाव या डिप्रेशन से गुजर रहे होते हैं।समाज में मनोरोगों के प्रति जागरूकता कम है। अगर किसी व्यक्ति से कहें कि आप दिमागी तौर पर बीमार हैं तो वह आमतौर पर बुरा मान जाता है। इन्हीं सब कारणों से समय रहते रोगी मनोरोग विशेषज्ञ से इलाज नहीं करवा पाता। अधिकांश वे लोग आत्महत्या करते है जो अंतर्मुखी होते है और उसके कोई नजदीकी दोस्त या परिवार का सपोर्ट भी नहीं रहता । इसके कारण भी वे स्वयं रहते है यदि आप अपनी समस्या खुलकर अपनो के सामने रखेंगे तो हो सकता है थोड़ा नाराज आपसे वो हो जाये लेकिन फिर सब एकजुट होकर आपको उस समस्या से बाहर निकलने में मदद ही करेंगे । 

हम सबको समझना होगा आत्महत्या की मनःस्थिति वाले व्यक्ति क्या चाहते हैं?

1.बात सुनने वाला कोई व्यक्ति। ऐसा कोई व्यक्ति जो उनकी बात वास्तव में सुनने के लिए समय निकालेगा। ऐसा कोई व्यक्ति जो निर्णय, सलाह अथवा राय नहीं देगा, बल्कि अपना पूरा ध्यान देगा।

2.विश्वास करने योग्य कोई व्यक्ति। ऐसा कोई व्यक्ति जो उनका सम्मान करेगा और उन पर हावी होने की कोशिश नहीं करेगा। ऐसा कोई व्यक्ति जो हर बात को गुप्त रखेगा।

3.ध्यान रखने वाला कोई व्यक्ति। ऐसा कोई व्यक्ति जो स्वयं उपलब्ध रहेगा, व्यक्ति को मानसिक शांति देगा और ठंडे दिल से बोलेगा। ऐसा कोई व्यक्ति जो पुनःभरोसा दिलाएगा, उसकी बात स्वीकार करेगा और उस पर विश्वास करेगा। ऐसा व्यक्ति, जो कहेगा, "मैं परवाह करता हूँ।"

समाधान -: 

श्रीमद भगवत गीता दुनिया के चंद ग्रंथों में से एक है जो आज भी सबसे ज्यादा पढ़े जाते हैं और जीवन पथ पर कर्मों और नियमों पर चलने की प्रेरणा देते हैं। गीता हिन्दुओं में सर्वोच्च माना जाता है, वहीं विदेशियों के लिए आज भी यह शोध का विषय है। इसके 18 अध्यायों के करीब 700 श्लोकों में हर उस समस्या का समाधान मिल जाता है जो कभी न कभी हर इंसान के सामने खड़ी हो जाती है। यदि हम इसके श्लोकों का अध्ययन रोज करें तो हम आने वाली हर समस्या का हल बगैर किसी मदद के निकाल सकते हैं।



श्रीमद भगवत गीता लाइफ मैनेजमेंट में सहायक -: 

1. वर्तमान का आनंद लो

बीते कल और आने वाले कल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जो होना है वही होगा। जो होता है, अच्छा ही होता है, इसलिए वर्तमान का आनंद लो।
2. आत्मभाव में रहना ही मुक्ति
नाम, पद, प्रतिष्ठा, संप्रदाय, धर्म, स्त्री या पुरुष हम नहीं हैं और न यह शरीर हम हैं। ये शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा। लेकिन आत्मा स्थिर है और हम आत्मा हैं। आत्मा कभी न मरती है, न इसका जन्म है और न मृत्यु! आत्मभाव में रहना ही मुक्ति है।

3.ईश्वर के प्रति समर्पण

अपने को भगवान के लिए अर्पित कर दो। फिर वो हमारी रक्षा करेगा और हम दुःख, भय, चिन्ता, शोक और बंधन से मुक्त हो जाएंगे।


4. यहां सब बदलता है

परिवर्तन संसार का नियम है। यहां सब बदलता रहता है। इसलिए सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय, मान-अपमान आदि में भेदों में एक भाव में स्थित रहकर हम जीवन का आनंद ले सकते हैं।
5. क्रोध शत्रु है
अपने क्रोध पर काबू रखें। क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि विचलित होती है। इससे स्मृति का नाश होता है और इस प्रकार व्यक्ति का पतन होने लगता है। क्रोध, कामवासना और भय ये हमारे शत्रु हैं।

6. नजरिए को शुद्ध करें

हमें अपने देखने के नजरिए को शुद्ध करना होगा और ज्ञान व कर्म को एक रूप में देखना होगा, जिससे हमारा नजरिया बदल जाएगा।
7. मन को शांत रखें
अशांत मन को शांत करने के लिए अभ्यास और वैराग्य को पक्का करते जाओ, अन्यथा अनियंत्रित मन हमारा शत्रु बन जाएगा।


8.कर्म से पहले विचार करें

हम जो भी कर्म करते हैं उसका फल हमें ही भोगना पड़ता है। इसलिए कर्म करने से पहले विचार कर लेना चाहिए।

9. अपना काम करें
कोई और काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि हम अपना ही काम करें। भले वह अपूर्ण क्यों न हो।

10.समता का भाव रखें

सभी के प्रति समता का भाव, सभी कर्मों में कुशलता और दुःख रूपी संसार से वियोग का नाम योग है।
तनाव से मुक्ति


11. प्रकृति के विपरीत कर्म करने से मनुष्य तनाव युक्त होता है। यही तनाव मनुष्य के विनाश का कारण बनता है। केवल धर्म और कर्म मार्ग पर ही तनाव से मुक्ति मिल सकती है।


11.मन चंचल होता है, वह इधर उधर भटकता रहता है। लेकिन अशांत मन को ध्यान के अभ्यास से वश में किया जा सकता है।

12.मनुष्य का स्वार्थ उसे नकारात्मकता की ओर धकेलता है। अगर इस जीवन में खुश रहना चाहते हैं तो स्वार्थ को कभी अपने पास आने मत दो। जो इंसान अपने नजरिए को सही प्रकार से इस्तेमाल नहीं करता है वह अंधकार में धंसता जाता है। मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है जैसा वो विश्वास करता है वैसा वह बन जाता है। 

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लेखन एवं संकलन मिलिन्द्र त्रिपाठी