ध्रुव प्रतिज्ञा

*"ध्रुव प्रतिज्ञा"*

या तो धूल धूसरित जीवन जी कर फकीरी आनंद ले या फिर कोई ध्रुव प्रतिज्ञा कर अप्रतिम प्रतिमान स्थापित करें।

लाल और हरी बत्तियों के इशारों पर सरकती जिंदगी को नीले आसमान के अनंत विस्तार में गौरवमयी उड़ान भरानी है तो आज ही एक ध्रुव प्रतिज्ञा करो।
 
प्रतिज्ञा करें कि जिंदगी में जितने बडे आप बनना चाहते है उससे भी बड़े कद की पुस्तकें आपकी अलमारी में हो। 

आपके अध्ययन कक्ष की व्यवस्थाओं का अधूरापन आगामी जीवन में भी अधूरापन रख सकता है। कोई फर्क नही पड़ता है कि आपका यह कक्ष छोटे से कोने में है या महल में। आपकी आस्था, पुरुषार्थ, साधना, चिंतन, चितानुरंजन का यह कक्ष आगामी जीवन की दिशा और दशा तय करेगा। इसे जितना व्यवस्थित रखेंगे जिंदगी उतनी ही व्यवस्थित होगी।

कक्ष से बाहर की दुनिया से पूरी तरह नाता नहीं तोड़ें। संगीत, कला, साहित्य, चुटकुले, मुस्कुराते चेहरे, सड़क पर भागती जिंदगी, उभरता विज्ञान इन सब पर पैनी नज़र रखें। आप सफल भी बन गए तो भी जीवन का शाश्वत रूप जीवन जैसा ही रहेगा। आप ये नहीं सोचे कि आपका जीवन स्वर्ग सा हो जाएगा, पीड़ाएं नहीं होगी। हाँ, ये बात दीगर है कि उस वक्त एक सफल व्यक्ति की परितुष्ट आत्मा समस्याओं का मुकाबला न खत्म होने वाले उत्साह के साथ करेगी। प्रतिस्पर्धा और परिश्रम के मामले में आप कमरे के कोने में जाल बनाने वाली मकड़ी और आंगन पर दौड़ती चींटी से भी हार जाओगे इसलिए तुलना के भंवरजाल में फसने के बजाय स्वयं से प्रतिस्पर्धा करो।

'सुख' और 'दु:ख' सबसे अधिक भ्रम में डालने वाले एहसास है और ये हमारे है भी नहीं दुनिया के दिये हुए है; हमने लिए तो हमारे नही लिए तो दुनिया के। कम से कम अपना कैरियर बनाने तक इन दोनों को पहचानने से इन्कार कर दे। सफल हो जाओ तब गम को ग़ज़ल रूप में लिखना और खुशी को गीत रूप में। कोई नहीं रोकेगा।

आप कितने सपनों का केंद्र बिंदू है ये एहसास बनाये रखने के लिए किताब की पृष्ठ संधारक लीफ पर उन लोगों का नाम, चित्र या हस्ताक्षर अवश्य रखें जो आपसे उम्मीदें रखते है।

और हां, सदैव याद रखें आप वो ही बने जो आप चाहते है बेमानी उम्मीदें कोई थोपे तो मुस्कुरा कर विनम्रता से अपना इरादा दोहराए और उस विधा के अपने विराट व्यक्तित्व की एक झलक प्रस्तुत करें।

यकीन मानिए सफलता विज्ञान की तरह है। प्रयोगशाला में इस या उस केमिकल को इतनी या उतनी मात्रा में मिलाओगे तो ये या वो परिणाम निकलेगा। बस अपने इस या उस प्रयास को सही जगह पर इस या उस मात्रा में करो, नियत समय पर ये या वो परिणाम मिलेगा।

प्रतिदिन पूरे अनुशासन के साथ एक "ध्रुव प्रतिज्ञा" करनी पड़ती है कि मैं धरती पर अपने होने का एहसास पाँव पटक कर रोने से नहीं बल्कि अपने इरादों की फसल बोने और बादलों को रोने के लिए मजबूर करके उगाऊंगा। 

और मेरी फसल एक दिन लहलहायेगी।

योग गुरू - डॉ. मिलिंद्र त्रिपाठी 🧘🏻‍♂️

*आरोग्य योग संकल्प केंद्र*