*"लक्ष्य खुद बनायें"*
छोटा हो या बड़ा लक्ष्य खुद बनायें। हमें दुनियाँ में हमसे बेहतर कोई नहीं जानता। कोई आपसे गणित में अच्छा हो सकता है; इस विषय पर ईर्ष्या न करें। यकीन मानिए आप किसी अन्य विषय में गणितज्ञ दोस्त से अच्छे होंगे।
बचपन से ही कुछ बनने के विचार हमारे भीतर ठूस-ठूस कर भरे जाते हैं। लेकिन दूरदर्शिता इसमें है कि हम कुछ अच्छी आदतों को हम हमारे भीतर ठूस-ठूस कर भरें। अच्छे विचार अच्छी आदतों के समानांतर चलते हैं।
अगर हमारी एक अच्छी आदत है कि हम हर एक सप्ताह एक अच्छी पुस्तक खरीद कर अवश्य पढ़ते हैं तो हम कुछ वर्षों बाद विचारों के मामले में समृद्ध हो जायेंगे। हम दिन भर के अनुभव से कुछ लोगों के खिलाफ कुछ शिकायतें इकठ्ठी करके लाते हैं तो लोगों के व्यवहार में खोट ढूंढने में हम पारंगत हो जाते हैं।
क्रिकेट मैच के पूरे 100 ओवर देखने की आदत और दूसरे दिन अखबार में केवल पूरे परिणाम को पढ़ने की दो अलग-अलग आदतें हैं लेकिन दोनों से हमारे भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव में अन्तर अवश्य होगा। वकील बनने वाले दोस्त को जीवन भर 100 ओवर के मैच देखने के बजाय चौपाल पर 10 मिनट के राजनैतिक तर्क-वितर्क ज्यादा फायदा देंगें।
अपनी आदतों के स्वामी बनें, गुलाम नहीं। किसी लक्ष्य का नाम लेते ही आपकी भुजाएँ फड़कती है या धड़कने तेजी से धड़कती हैं या मस्तिष्क में बिजली कड़कती हैं और नकारात्मकताओं पर बिजली तड़कती हैं तो बिना लड़ें ही आप आधा मैदान जीत चुके हो।
*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी 🧘♂*
(आरोग्य योग संकल्प केंद्र)