व्यस्तता से खर्च हुई ऊर्जा का हिसाब जरूरी है।

मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों से बात शुरू करता हूँ।

"प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को।"

हम किसी काम में व्यस्तता से ऊर्जा खर्च करते है उस ऊर्जा के खर्च के एवज में हमें क्या मिला इसका हिसाब जरूरी है। अब ये भी नहीं ठीक कि इस बात पर हमने समय को सिर्फ रुपयों के तराजू में तोलना शुरू कर दिया। जरूरी यह है कि जो कुछ भी मिला उसका खुद की उत्तरोत्तर प्रगति के लिए और सृष्टि सृजन के लिए उपयोग क्या है।

कई बार हमें हमारे व्यस्त क्रियाकलापों से अन्तिम उत्पाद्य के रूप में चिन्ता, घृणा, क्रोध, ईर्ष्या, डर, आलस्य, भ्रमपूर्ण सुख जैसे नकारात्मक विचार ही मिल रहे है तो व्यस्तता का तरीका बदलना बेहद जरूरी है।

आप जगह जगह खुद को भटकने  से रोकते नहीं हैं तो बिना ब्रेक की कार की तरह हर जगह टकराते ही रहेंगे। एक दिन मन के घोड़े की सारी लगाम कसकर थाम लोगे तो पाओगे कि आज आप दयनीय हालात में जी रही दुनियां से बहुत दूर चले आये हो। आपको खुद अच्छा लगेगा। शाम को सोते वक्त जिसे थकान नहीं है, उसे अधकचरी नींद आयेगी और अधकचरी नींद के बाद दूसरा दिन कभी अच्छा नहीं होता। यह दुष्चक्र ऐसे तो चलता ही रहेगा।

दिन का जबरदस्त ऊर्जा के साथ पूरा सदुपयोग करो। भटकाने वाले क्रियाकलाप जिनसे सपनों को हासिल करने के लिए मिलता कुछ नहीं है, वहाँ से चुपचाप उठकर उन तकलीफदेह कामों में लग जाओ, जो आपके भविष्य में आने वाली हर तकलीफ का सरल समाधान है।

आज जो 23 घण्टे 56 मिनट और कुछ सेकंड आप को मिले है इनका आज उपयोग नहीं किया तो बचे हुए घण्टे कल के उपयोग के लिए प्रदान कर दिए जायेंगे; ऐसा सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज तक नहीं हुआ।

*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी 🧘🏻‍♂️*

   (आरोग्य योग संकल्प केंद्र)