दुष्यन्त कुमार की गजल की कुछ पंक्तियां खास हैं।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख
ये धुँधलका है नज़र का,तू महज़ मायूस है
रोज़नों को देख,दीवारों में दीवारें न देख
राख, कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख.
जीवन में आने वाली हर असफलता निरर्थक नहीं होती बल्कि आने वाली सफलता के सारे राज उसी में छुपे हुए होते हैं। असफलता का विश्लेषण नहीं करना अन्य अफलताओं को आमंत्रण देने जैसा है। 10 मिनट के लिए एक पेन पेपर लेकर बैठो और लिस्ट बनाओ कि ऐसा क्या क्या है जो आप चाहो तो प्रतिबद्धतापूर्वक कर सकते हो। फिर वो लिस्ट बनाओ जिन कारणों से आप असफल रहे। अब आपके सामने शतरंज का खेल स्पष्ट है। पहली लिस्ट की मजबूत गोटियों से दूसरी लिस्ट की कमजोर गोटियों को मार गिराओ।
विष्णुपुराण में कहा गया है।
वस्त्वेकमेव दुःखाय सुखाय ईर्ष्या उद्भवाय च।
कोपाय च यतस्तस्माद् वस्तु दुःखात्मकं कुतः।
अर्थात् एक ही वस्तु किसी के लिए सुखदायी होती है तो किसी के लिए दुःखदायी होती है, वही किसी में ईर्ष्या पैदा कराती है तो किसी में क्रोध। अतः वस्तु दुःखात्मक कहाँ है।
सफलता पाने के लिए लम्बे समय तक समय खराब करना ठीक नहीं। हर व्यक्ति के भीतर कुछ अद्भुत शक्तियां भरी होती हैं, उनको पहचानना और बिना शोर मचाये काम पर लग जाना होता है। कुछ केंद्र बिन्दुओं से जरा भी मत भटको। जिनमें, समय, हौंसला, अनुशासन, प्रेरणा, खुशियाँ और सफल लोगों का साथ जैसे बिन्दु खास है। इनकी और अन्य मिलते जुलते बिन्दुओं की पहचान आपको ही करनी पड़ेगी क्योंकि आप से बेहतर आपको इस संसार में कोई नहीं जानता।
*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी*
(आरोग्य योग संकल्प केंद्र)