वैसे 'खुशी' कोई पूर्वनिर्मित विचार नहीं है। हम ही इसे बनाते हैं, हम ही इसे तोड़ते हैं।
सुभद्राकुमारी चौहान की चंद पंक्तियां इस बात का समर्थन कर रही हैं।
"तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है।
मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है।।
सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे।
बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे।।"
आप खुशी को अपने आस पास तलाश पाओगे यदि आप कुछ बातों से पार पा जाते हो और दिमाग को अनावश्यक रूप से उलझाने वाली बात को भूल जाते हो।
दूसरों के चेहरों पर यदि आप किसी बहाने खुशी ला सकते है तो आप खुशियों की खदान है। ऐसे में दुःखी होकर आप नमक के पहाड़ पर बैठकर नमक तलाश रहे हैं।
आप जिस किसी काम में लगे हुए है, वो छोटा हो या बड़ा, उसमें रच बस जाओ। बस काम रचनात्मक या किसी को नुकसान पहुँचाने वाला न हो। धीरे धीरे दुःख से परिचय खत्म हो जाएगा।
बुरी से बुरी परिस्थिति में भी शांत मन से कुछ सीख लो। दूसरे दिन का नया सूरज कुछ नया लेकर आएगा ही। इस बात की आप मुझसे शर्त लगा सकते है कि कल आज से अलग होगा।
बुरे दिन कई बार अच्छे दिन से ज्यादा देकर जाते हैं।
हर छोटी छोटी चीज़ में खुशियों की तलाश करो। किसी को छोटा मत समझो। लोगों से संवाद करो। विवाद के शुरू होने से पहले ही मुस्कुरा कर रास्ता बदल देना, या विषयवस्तु बदल देना आपकी हज़ारों कैलोरी बचा देगा।
जहाँ कहीं बुराई हो रही हो वहाँ से निकल लो। फिर भी बुराई करने की इच्छा उत्पन्न हो रही हो तो आप स्वयं को टारगेट बनाओ। काफी हल्का और बदला बदला महसूस करोगे।
हर एक घण्टे बाद अपना संकल्प दोहराओ कि आपकी मर्जी के बिना कोई छुटभैया आपको दुःखी नहीं कर सकता।
हर व्यक्ति, हर परिस्थिति, हर स्थान में जितना अच्छा है उतना अवश्य लो। इस दुनियां में आप जितना विस्तृत साम्राज्य चाहते है, उतने को सुधारने का प्रयास तो आपको करना ही चाहिए।
*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी 🧘🏻♂️*
(आरोग्य योग संकल्प केंद्र)