जब ऊपर वाला आपकी थाली में ऐसा कुछ परोस दे जो आपको भाता नहीं है तब समझ लीजिए ये कड़वी दवा की तरह का मामला है, तुनकमिजाजी किये बगैर खा लीजिए।
जिन्दगी है जब तक असफलताओं के ओले थोड़े या अधिक अंतराल पर आसमान से टपकते रहेंगे। जीवन में कई असफलताएं तो छद्मावरण में आपका हित करने के लिए आती हैं। वे आकर आपको छटपटाहट और आकुलता देती है। लेकिन ऐसी अँधेरी गुफा में चलने का आपका यह अनुभव आपके पार्थिव शरीर में भावों की हलचल पैदा करता है। आपको भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है।
वैसे जब तक आप मन में हारे बिना योजना और प्रतियोजना बनाते रहते है तब तक आप हारे नहीं है। अपने बुलन्द इरादे, जज्बे और जुनून की हिफाजत करने में आप सफल रहते है तो कुछ बड़ी और अधिक महत्ववाली सफलता थोड़ा आगे ही आपका इन्तजार कर रही होती है।
यदि एक बार आपके मन में निराशा घर कर गयी तो मनोरंजन में भी आपको पीड़ा की प्रतीति होगी। रचनाकार ने रात के साथ दिन भी बनाया है। बादलों के साथ धूप भी बनाई है। आँसू के साथ मुस्कुराहट भी बनाई है। काँटो के साथ फूल भी बनाया है। मोह के साथ मोहभंग होने के भाव भी बनाये हैं। काले के साथ सफेद रंग भी बनाया है। भक्षक और रक्षक प्रकृति में सदैव रहे हैं। भक्षक जीवन में हावी होने लगे तो थोड़ा धैर्य से देखना रक्षक आपके आस पास या आपके भीतर ही होगा।
एक तो अपनी सफलता की तुलना दूसरों से करना बन्द कीजिए। क्या पता आप ओने-पोने अस्तित्व वालों से बहुत बड़े हों।
दूसरा प्रेम का मामला हो या नफरत का भावनात्मक रूप से बीमार मत बनिए। आप मजबूत बने रहें। थोड़े दिनों बाद में वे ही लोग आकर आपसे सफलता के सूत्र पूछेंगे जो आप पर हँसा करते थे।
तीसरा याद रखें दुनियां में जितने संसाधन और अवसर है यकीन मानिए आप थक जायेंगे पर ये कभी खत्म नहीं होंगे। फिर, दोस्त! क्या ये छोटी सी चीज नहीं मिलने का मातम मना रहे हो।
चौथा योजना बना कर आगे बढ़ें। पिछली असफलताओं पर माकूल चिंतन करें। घड़ी के कांटों पर और कैलेण्डर पर एक नज़र रखें।
पांचवां दुनियां आपसे ईर्ष्या करती है या घृणा, तारीफ करती है या आलोचना, छोटा कहती है या बड़ा आप मस्त हाथी की तरह रास्ते में दाएं बाएं स्थित फूल पत्तियों, वनस्पतियों, फलों का रसास्वादन करते हुए एकनिष्ठता से आगे बढ़ें। क्षुद्र प्राणी रास्ता दे देंगे। आगे एक सुरम्य पोखर मिलेगा। वहाँ अपनी सूंड में निर्मल पानी भरकर आसमान में उछालना। रास्ते की सारी थकान दूर हो जायेगी। रास्ते में कौन कहाँ भौंक रहा था आपको याद भी नहीं रहेगा।
*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी*
(आरोग्य योग संकल्प केंद्र)