"भाग्यरेखा...."



किसी मित्र ज्योतिष शास्त्री ने ऐसे ही हथेली पर नज़र डाल कर कहा भाई तुम्हारी भाग्य रेखा आजकल किञ्चित धुँधली नज़र आ रही है, आओ कभी हवेली पर कोई ताबीज कर देता हूँ। नियत समय पर हवेली पहुँच भी गया। सात ताबीज पहले से ही बना कर रखे हुए थे। मित्र ने कहा ये बाँधने के लिए नहीं बल्कि बंधने के लिए है। एक एक ताबीज को खोलो उसमें लिखी पर्ची पढ़ो और उस बात को मन में उतार कर ताबीज फेंक देना। फिर सभी सातों पर्चियों को खोल कर पढ़ता गया। संदेश कुछ यूँ लिखे थे।

पर्ची 1- अपने निर्णयों पर टालमटोल मत करो।

पर्ची 2- पहला कदम पूरे साहस के साथ उठाओ।

पर्ची 3- भीड़ को सुन लो पर मन का निर्णय सबसे ऊपर रखो।

पर्ची 4- खुद से बेहतर जान पहचान करो।

पर्ची 5- वेदना में भी संवेदना को जिन्दा रखो।

पर्ची 6- धन की परिभाषा सोच समझ कर बनाओ।

पर्ची 7- मन में एकनिष्ठ संकल्प का बोया बीज ही सच्चा ताबीज है।

अभी कल से अपनी भाग्यरेखा साफ नजर आ रही है और मुट्ठी बन्द करता हूँ तो लगता है दुनियाभर को मैंने बस में कर लिया है। मुट्ठी खोलता हूँ तो कसमसाती और बिलबिलाती नकारात्मकताओं का पसीना फुर्र से भाप बन उड़ जाता है।

*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी*

    (आरोग्य योग संकल्प केंद्र)