"सौगातें और भी हैं"



ब्रह्मांड की गणना से देखें तो मनुष्य का जीवन बहुत छोटा कालखंड है। सुबह से शाम तक कोशिश करें कि अपने घर-आँगन, उपवन, गांव, शहर में कुछ खुशियों के कारण आप बनें। 

ऐसे कुछ पल चुराएं कि बूढे बुजुर्ग स्नेह के वशीभूत हो आपके सिर पर हाथ फेरे और आप ज्यों के त्यों होकर बालों के बिखरने का आनंद लें।

बरस बीत जाने के बाद यकायक आप किसी को दो मिनट के लिए भी फ़ोन करते है तो सूखे रिश्तों को नमीं मिलती है।

तारीफ़ों के तोहफ़े संसार में निःशुल्क हैं, धीर-ललित नायक नायिका की तरह योग्य लोगों के कृत्यों की यथोचित प्रशंसा करने से आप एक अच्छे काम को और फलने फूलने का आशीर्वाद देते हैं।

संसार के तिलिस्म को एक कोने में रखकर तुतलाते, मुस्कुराते नन्हें-नन्हें बच्चों के साथ खेलें, संवाद करें, आँगन में काठी वाला घोड़ा बनकर उनको सवारी करवाये, वरना संसार की अनमोल विरासतें लुप्त हो जायेगी और बच्चों के उस अनमोल वक्त के साथ कोई और खिलवाड़ कर जायेगा।

जरूरी नहीं है कि पेड़ घर के सामने ही लगाया जाय, बल्कि जहाँ लगाओगे उस पेड़ की छाया का घेरा आप द्वारा लोगों को दी गयी जमीन है।

महीने में एक दिन शान्त प्रकृति की पाठशाला में बितायें। प्रकृति के उस अद्भुद चितराम में अनुशासन, ध्यान, धर्म, नियम, हँसी, खुशी, संगीत, कला और चिंतन का वो पाठ पढ़ने को मिलेगा जो हम कृत्रिम संसार में महीनों तक पढ़ कर भी हासिल नहीं कर सकते हैं।

आश्चर्य की बात है, संसार के सबसे बहुमूल्य तोहफे निःशुल्क हैं।

*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी 🧘🏻‍♂️*

    (आरोग्य योग संकल्प केंद्र)