उसी क्षण जुट जाओ.



बड़ी प्राकृतिक आपदाओं और विश्वयुद्धों में मानवता को नुकसान पहुंचा है परन्तु महत्वपूर्ण कार्यों को टालने की प्रवृत्तियों ने मानव सभ्यता को सबसे बड़ा नुकसान पहुंचाया है।

"इसकी तैयारी अगले माह शुरु करूँगा/करूंगी"।
"बस ये सर्दी कम हो जाये फिर मॉर्निंग वॉक पर जाऊँगा/जाऊँगी"

इस तरह के न जाने कितने कारणों और बहानों ने किसी उपयोगी और बहुमूल्य काम को अटकाया है। जिस क्षण कोई सुविचार आपके मस्तिष्क में आया है, वह अद्वितीय क्षण है। तत्क्षण काम में जुट जाने की प्रवृत्ति बहुत गिने चुने लोगों में हैं। अगर आप उन गिने चुने लोगों में से एक है तो अपने हस्ताक्षर सुडौल करने का अभ्यास कर लें क्योंकि बहुत जल्दी आपके साथ सेल्फी खींचने की होड़ मच सकती है और हस्ताक्षर देने पड़ सकते है।

हमारी प्रकृति के बादल, हवाएँ, वर्षा, ऋतुएँ, धूप आदि कुछ भी रुकता नहीं है। पांच तत्वों से बने शरीर में भी श्रेष्ठ कार्यों को टालने की आदत घातक है।

जनवरी में कोई ख़याल दिमाग में आया था और अप्रैल में काम में लगे हो तो आप उन लोगों से जीवन भर दो महीने पीछे ही रहोगे जिन्होंने दो महीनों का भरपूर उपयोग लिया है।

दो ओवर लगातार खाली निकल जाए तो टीम की साँसें अटक जाती है। हर ओवर में कुछ न कुछ अर्जित करें। कुम्भकर्णी नींद में से उठकर आप छः बॉल में छः छक्के लगा देंगें ऐसा सैंकड़ों सालों में एक बार होता है।

वास्तविक बनें।
फंतासी संसार में न जीए।

*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी*

     (आरोग्य योग संकल्प केंद्र)