मुश्किल लम्हें



बहुत गुदगुदाते हैं बीते हुए लम्हें। कभी इनमें डूब दिल गहगहाने लगता है और कभी ये लम्हें आँसू बनकर आँखों में डबडबाने लगते हैं। लेकिन अतीत के किसी भी रंग से वर्तमान बदरंग नहीं होना चाहिए।

जिन लम्हों ने ज़ख्म दिया उन्होंने दर्द को सहने की ताकत भी दी है। कुदरत का खेल भी ऐसा ही है कि धूप ना हो तो वृक्ष की वृद्धि असंभव है। कड़वी आलोचना, कड़वे बर्ताव और कड़वे पल हमें आला दर्जे का खूबसूरत इंसान बनाते हैं। जिंदगी अगर बिना किसी मुसीबत के आराम से सरक रही है तो जीवनवृत्त रेत पर लिखा जा रहा है जिसको मिटते ज्यादा समय नहीं लगेगा। जीवन-शिला पर हथौड़ी छैनी की चोटें पड़ेगी तो खामोश पत्थर भी बोलने लगेगा और उसकी जीवटता के किस्से दूर दूर तक चर्चे में होंगे।

पसीना बहना भी चाहिए। दर्द की स्वानुभूति से संसार के प्रति हमारी समानुभूति उत्पन्न होती है। कुछ अभाव स्वभाव को अहंकार रहित कर देते हैं। तरकारी बेचने वाले का ग्राहकों को बुलाने का उत्साहित ऊँचा स्वर उसकी बेशकीमती संपत्ति है वरना तरकारियों के खिलखिलाते वर्तमान पर अतीत अपने दाग छोड़ जाता है। बीते हुए लम्हों को दुःख में जिया है तो अब उन्हें भुला दो क्योंकि वो अब बीत चुके हैं। आज को जिओ पूरे उत्साह से, उमंग से, जोश से मगर याद रखते हुए कि जोश में आपने तकलीफ के दौर की सबसे मुश्किल कमाई 'होश' नहीं खोया है।

*योग गुरू - डॉ. मिलिंद त्रिपाठी 🧘🏻‍♂️*

(आरोग्य योग संकल्प केंद्र)