बैंक में बटोरे गये धन के अलावा कुछ और भी संपतियां है जिससे आप बुलंद-इकबाल है।
आपने सैंकड़ों पुस्तकों से महकती सुगन्ध एकत्रित कर अपने जीवन को सुवासित कर दिया है तो आप खुद एक बहुमूल्य हीरा है।
जब लोग आपके होंठ हिलाने के मुंतजिर हो आपकी लुब्ध कर देने वाली वाणी के कर्ण-कुहरों में पड़ते ही वे लहलहाने लगते है तो आप एक बहुमूल्य माणिक्य है।
आपके मस्तिष्क के 'रडार' में कुविचारों के विमान आते ही आप उन्हें ध्वस्त कर देते है तो आपकी ये त्वरित निर्णय वाली बुद्धिमानी आपको बहुमूल्य पन्ना बनाती है।
आपके परिश्रमशील शरीर का हर एक कतरा आलस्य और रोग से मुक्त है तथा निर्माणात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत है तो आपने बहुमूल्य नीलम रत्न को निस्तेज कर दिया है।
आपने अपनी तालीम उन गुरुओं से ली है जो जीवनभर कहते रहे कि "मुझे कुछ नहीं आता, मैं सीख रहा/रही हूँ" पर आप उनके निर्विवादित, सरल और शाश्वत रूप से आकृष्ट रहे तो आप बहुमूल्य पुखराज की आभा से मंडित हो।
और हाँ, आप कहीं कुछ पल बिता कर आते है और वहाँ के वातावरण में सदियों तक रहने वाला अनुराग घोल कर आ जाते है ऊपर उल्लिखित सारी मणियां तराजू में आपके समक्ष हल्की पड़ेगी।
बैंक के धन का संचय नहीं, सिर्फ सदुपयोग करो। संचय योग्य धन संसार में बहुत है, जहाँ कोशिश करोगे वहाँ मिलेगा।
*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी 🧘🏻♂️*
(आरोग्य योग संकल्प केंद्र)