जरा सा बदल कर देखो..


आँखों के सामने बस या रेल निकल गयी। गुस्सा करके पैर से खाली केन उछालने के बजाय, प्लेटफॉर्म की किसी बेंच पर बैठ दहकना बन्द करो। आज तजुर्बा हासिल करने का दिन है। शान्ति से दुनियावी दौड़ भाग को प्रसन्न आँखों से देखो। ये एक मिनट का अन्तर नसीब का मामला था या  नसीहत का ? अगली ट्रैन आने तक नसीहत मिल जाती है तो आज बुरा होकर भी सब अच्छा ही हुआ।

कभी किसी पर गुस्सा आये तो जिस पर आया है उसे संबोधित कर कालिख पुती भाषा में उसे पत्र लिखना। उस दिन उस पत्र को पत्र-मंजूषा में पोस्ट मत करना। उसे सिरहाने रखकर सो जाना। प्रातःकाल उठकर उस पत्र को एक बार पुनः पढ़ना। आप बालों में हाथ फेरते खुद से कहोगे, "इतना बुरा तो वो नही है"
बीती रात आंधी के बाद धूल कण रफ्ता रफ्ता जमीं पर आकर फिर से जम गये। मन में उठे फ़ितूरों को उनकी ताकत दिखाने दो और हमें हमारी। देखते है कौन जीतता है?

ये जो शादी के आयोजन में गर्म रोटी की स्टॉल पर असहज करने वाली भीड़ लगी है ना, उसमें परेशान होने के बजाय पूरे परिसर में बिखरे हुए सौंदर्य, हास्य या वात्सल्य रस पर अपना ध्यान केंद्रित करें। किसी आयोजन में मस्तिष्क को भी भोजन दो, और शगुन के लिफाफे में प्रेम और आत्मीयता से सराबोर चन्द रूहानी पंक्तियां लिखो। शादी से ज्यादा यादगार ये पल होंगे।

विजेता बनने के लिए सिकन्दर सी इच्छाएं पालो, लेकिन दिल में झेलम सा स्वच्छ आब भी बहाओ क्योंकि धरती जीत कर धरती में ही रौंदा जाना है तो हमने जीता क्या?

उत्कृष्ट जीवन के लिए मन को निर्मल रखो।

*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी 🧘‍♂*

    (आरोग्य योग संकल्प केंद्र)