प्रकृति अपनी हर अद्भुत प्राकृतिक शक्ति व्यक्ति को देकर संसार में भेजती है। हम यदि उन शक्तियों की पहचान नहीं करते है तो धीरे धीरे उनको खो देते है।
"रहता नहीं है कुछ भी यहाँ एक सा सदा
दरवाज़ा घर का खोल के फिर घर तलाश कर.
कोशिश भी कर उम्मीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर उस के बाद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर"
पेड़ों की जड़ें जमीन के भीतर विकसित होकर पेड़ का स्वरूप बनाने के लिए पेड़ के अस्तित्व तक अपना काम करती रहती हैं। कुछ ऐसी ही जड़ें मनुष्य के लिए भी होती है। वे जड़ें हमें दिखती नहीं है लेकिन हर इंसान के इर्द-गिर्द ये जड़ें मौजूद होती हैं। ये जड़ें ही तय करती है कि उस व्यक्ति का आकार, अस्तित्व और संघर्ष में टिकने की क्षमता कैसी होगी।
आपका वह संघर्ष जो दुनियां ने देखा नहीं वे आपकी जड़ें ही हैं। आप जमीन से जुड़े हो तो जड़ें ही आपको जमीन से जोड़ती हैं। जड़ें ही हमें सिखाती है कि शान्त भाव से आगे बढ़ो, शुरुआत में आपको अपने विकास के लिए खूब संघर्ष करना पड़ेगा। दिखावे वाली जिन्दगी में पतझड़ आता है तो उसमें बहार जड़ें ही लाती हैं। आपके व्यक्तित्व का यह जड़ वाला भाग ही तो है जिसको कोई आसानी से हिला नहीं सकता। जब भी कोई संकट या परिश्रम का दौर चल रहा हो तो याद रखना आपकी जड़ों को पोषण मिल रहा है।
अपनी जड़ें मजबूत करो। यदि आपने अपनी मानसिक जड़ें मजबूत बना ली है तो हर टपकने वाले आँसू का खालीपन संघर्ष करती वो सदैव नमीं रखने वाली जडें फिर से भर देगी और आपके चेहरे पर आया पतझड़ थोड़े समय बाद ही फिर से बहार में बदल जायेगा और आप फिर से मुस्कुरायेंगे।
*योग गुरू - डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी*
(आरोग्य योग संकल्प केंद्र)