कशमकश

किसी काम को 'करूँ' या 'ना करूँ' की कशमकश में अगर समय का बहुभाग निकल जाता है तो ऐसे में हम दलदल में फँसे हुए प्राणी की तरह होते है; ना निकल पाते है ना पूरे भीतर समाते हैं। हाँ, कार्य को करने से पहले चिंतन जरूरी है पर 'असूझ' की स्थिति में लम्बे समय तक लटकने से आपकी जीवनी के लिखे जा रहे पृष्ठ पर गर्दिश का दौर चल रहा है और ये पृष्ठ आपकी पूरी किताब का आकर्षण और महत्व खत्म कर रहे हैं।

जरूरत है उन दो-चार कुलफत पैदा करने वाले विचारों को पहचानने की और उन्हें कूड़ेदान में डालने की। गेहूँ में लगा घुन भी गेहूँ के साथ पिस जाता है। आम रास्तों पर घिसटती जिन्दगी गेहूँ में लगकर इस तरह पिसने के लिए नहीं है। गेहूँ को पीसकर उसके सैकड़ों व्यंजनों का लुत्फ़ उठाया जाना चाहिए। 'घुन' में केवल एक 'धुन' होती है; पेट भरने की। केवल इस उद्देश्य से चल रहे हैं तो कोई भी हमें पीस देगा।

तत्सामयिक दुनियां को तेजी से समझते हुए करणीय कार्य का निर्णय लेने की तदबीरों से ही तकदीरें बदलती हैं। हतोत्साहित करने वाली सबसे ज्यादा आवाजें दुनियां की तरफ से नहीं, हमारे भीतर से ज्यादा आती हैं। जब आप कोई निर्णय ले चुके हो तो बधाई। लेकिन याद रहे निर्णय आपका है। रास्ते में आने वाली समस्त चुनाैतियों और खुशियों में बिछलाहट के समय उठकर अपने कपड़ों पर लगी रेत भी आपको झाड़नी पड़ेगी और शर्ट पर लगाने के लिए कोई 'बैज' मिला है तो उसका मान भी आपको ही रखना होगा।

किसी कशमकश में अपने जीवन का कीमती समय खराब ना करें। जब किसी रास्ते पर चल ही पड़े हो तो अपने कदमों के ऐसे निशान छोड़ो जो लड़खड़ाते, डगमगाते, क्लान्त होते हुए भी सिर्फ़ आगे ही बढे।

शुभास्ते पन्थानं सन्तु।

योग गुरू - डॉ मिलिन्द्र त्रिपाठी 🧘🏻‍♂️

      (आरोग्य योग संकल्प केंद्र)