ध्यान (meditation ) क्या है ?

ध्यान (meditation ) क्या है ? -: लेखक योगाचार्य पं मिलिन्द्र त्रिपाठी


एक भ्रमित व्यक्ति ने बड़े गर्व के साथ कहाँ अरे मिलिन्द्र जी मे में योग क्लास जा रहा हूँ । वहां मुझे ध्यान लगाना सिखाया जा रहा है । मैने अनायास ही प्रश्न किया क्या आपने कभी एकाग्रता का नाम सुना है उसने कहाँ नही ओर ध्यान से ही तो एकाग्रता आती है । मेने उन्हें इस बारीक से अंतर को समझाया कि भाई एकाग्रता से आप ध्यान की ओर स्वत: जाते है । ध्यान के पूर्व एकाग्रता का अभ्यास किया जाता है । एकाग्रता आपको अपने आप ध्यान में ले जाती है । बिना एकाग्रता के ध्यान असम्भव है । फिर उसने बताया की में ध्यान में गया तो मुझे कुछ पता ही नही चला में तो आधे घण्टे तक रहा । मेने कहाँ भैया जी आप ध्यान में नही थे बल्कि आप नींद में थे । नींद ओर ध्यान में बहुत बड़ा अंतर है । परेशान होकर उसने पूछा अरे तो गुरुदेव आखिर ध्यान के प्रकार कितने है । मेने हंसकर जवाब दिया आप कितनी देर अपने आप को एकाग्र कर पाते है उनका जवाब था कि नही पता । मेने कहाँ पहले आप अपनी एकाग्रता को समझिए जानिए फिर आगे की बात बताऊंगा । एकाग्रता का अर्थ है कि आप अपने सम्पूर्ण मष्तिष्क को किसी एक स्थान या क्रिया पर केंद्रित कर दे और ध्यान का अर्थ है कि आपका मष्तिष्क कहीं भी ना भटके, अर्थात ध्यान वह प्रक्रिया है जो आपका दिमाग किसी भी जगह न होकर अंतरमुखी हो । 
किसी भी कार्य को सतर्कता के साथ और मन का केंद्रित करके करना एकाग्रता कहलाता हैं। जैसे नोट गिनते वक़्त सभी व्यक्ति एकाग्र होता है,  विद्यार्थी पढ़ते वक्त एकाग्र होता है, साइंटिस्ट अपनी रिसर्च पर एकाग्र होता है,निशानेबाज अपने लक्ष्य में एकाग्र होता है । एकाग्रता एक मानसिक क्रिया है। जबकि ध्यान अपने आप स्वत:होने वाली क्रिया है कोई आपको ध्यान में ले नही जा सकता बल्कि आपको स्वयं ध्यान में जाना होता है । आकार में अपने आपका ध्यान लगाना एकाग्रता हुई जैसे किसी वस्तु पर ,किसी बिंदु पर आदि जबकि ध्यान जागरूकता है । एकाग्रता में रहोगे तो भारीपन लगेगा ध्यान में रहोगे तो हल्का महसूस करोगे । एकाग्रता संकीर्ण अवस्था है । 
सामान्य भाषा मे समझिए में जो कह रहा हूँ केवल उसपर केंद्रित करोगे तो कुछ और सुनाई नही देगा यह एकाग्रता है लेकिन में जो कह रहा हूँ उसे भी सुनते हुए आसपास की हर आवाज को भी सुन्ना यह ध्यान है । मेने कहाँ आप अपनी साँसों को गिनो उल्टी गिनती करो आप खो जाओगे गिनती करते करते गिनती भूल गए बस वही से ध्यान लग गया । केवल गिनती गिनते रहोगे तो आपकीं एकाग्रता की अवस्था है । आपको मेने कहाँ मस्तिष्क में कोई विचार मत आने दो यह अवस्था एकाग्रता की है लेकिन मेने कहा आप आते जाते सारे विचारों को केवल देखो तो यह ध्यान की अवस्था है आप को आनंद आएगा आप ध्यान में चले गए । मेने कहाँ आप दोनों कान के अंदर बीच वाले हिस्से में ध्यान लगाएं आपको बड़ा आनंद आएगा जब आप ध्यान से बाहर आएंगे आपको आन्तरिक शरीर की आवाज भी सुनाई देगी । अर्थात आकार पर ध्यान करना एकाग्रता और निराकार पर ध्यान करना ध्यान है । 


योग के सबसे पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता में आखिर ध्यान के बारे में क्या बताया गया है -: 

अध्याय 6, श्लोक 11, 12 व 13)

 

अथवा भारी विषयों के चिंतन से मन को हटाकर नेत्रों की दृष्टि को भृकुटी के बीच में स्थिर करके तथा नासिका में विचरने वाले प्राण एवं अपान वायु को सम करना चाहिए। 

 

स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवौ:।

प्राणापानौ समौकृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ।।

 

अध्याय 5/27

 

तब मन को संयमित, उत्तेजनारहित एवं शांत करते हुए उसे ईश्वर के चिंतन व ध्यान में लगाना चाहिए। इस प्रकार निर्विकार एवं निर्मल मन वाला तथा आत्मा को निरंतर परमात्मा के ध्यान में लगाता हुआ योगी परमानंद की पराकाष्ठा-स्वरूप परम परम शांति को प्राप्त होता है। 

 

अध्याय 6/15

 

यह स्मरण रखना चाहिए कि यह योग न तो बहुत खाने वाले का, न बहुत भूखा रहने वाले का, न बहुत सोने वाले का और न बहुत जागने वाले का सिद्ध होता है। वास्तव में आनंद और शांति देने वाला यह योग तो यथायोग्य आहार-विहार करने वाले, जीवन-कर्म में उचित प्रकार से रत रहने वाले तथा यथायोग्य (यानी सम्यक प्रकार से) सोने-जागने का ही सिद्ध (अर्थात सफल) होता है।

 

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।

युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।। अध्याय 6/17


क्रमशः 

लेखक योगाचार्य पं मिलिन्द्र त्रिपाठी