स्वस्थ जीवन के लिए अतिआवश्यक यौगिक आहार एवं
दिनचर्या-: लेखक योगाचार्य पं.मिलिन्द्र त्रिपाठी (MSC yog )
हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में आहार और योग दोनों की समान और अहम भूमिका होती है। सात्विक आहार और नियम वाला जीवन हमारे शरीर का सम्पूर्ण विकास करते हैं। इनमें संतुलन बेहद जरूरी है । हम जो भी भोजन करते हैं उसका कुछ हिस्सा हमारा रक्त बनता है, कुछ मांस, कुछ हड्डी और कुछ अन्य अंग। यहां तक कि हमारे विचार भी भोजन की ऊर्जा के ही परिवर्तित रुप हैं । यौगिक और सात्विक आहार की श्रेणी में ऐसे भोजन को शामिल किया जाता है जो व्यक्ति के तन और मन को शुद्ध; शक्तिवर्द्धक, स्वस्थ और प्रसन्नता से भर देता है। दूसरे शब्दों में कहें तो सात्विक आहार व्यक्ति को संतुलिक स्वस्थ शरीर, शांति, सामंजस्यपूर्ण तालमेल की कुशलता और बौद्धिक व्यक्तित्व प्रदान करता है।
सात्विक आहार शांत व स्पष्ट मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है।
हिंदू धर्मग्रंथ वेद में कहा गया है कि अन्न ही ब्रह्म अर्थात ईश्वर है। अन्न को अच्छी भावदशा, ऊर्जावान, साफ-सुथरी तथा शांतिमय जगह पर ग्रहण किया जाए तो वह अमृत समान होता है। सात्विक भोजन आयुर्वेद के प्राचीन नियमों पर आधारित है, जो सामान्य व पारंपरिक विधियों से तैयार किया जाता है। भोजन तैयार करने के अनेक आधुनिक उपकरणों द्वारा तैयार भोजन पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जो उसे राजसिक व तामसिक बना देता है। ऐसा भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अपने आहार का एक निश्चित समय तय करें अतिभोजन कदापि न करें। अति आहारी अपने दांतों से अपनी कब्र खोदता है।
भोजन चबा-चबा कर ही खायें।
मौसमी फल, हरी सब्जियां एवं साबुत अनाज का अपने भोजन में अधिक प्रयोग करें।
योगी बनो -:
स्वयं भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि ‘जीवन में अगर यशस्वी बनना है तो योगी बन।’ योगी बनने का मतलब केवल शारीरिक कसरत या आसन करना नहीं तो प्रमुखतः विशाल मन का अभ्यास करना है। चित्त की एकाग्रता का मुख्य साधन योगाभ्यास ही है। कहते हैं,‘जैसा खाये अन्न वैसा बने है मन।’ आहार का मन पर बड़ा गहरा असर होता है। आहार के सूक्ष्म अति सूक्ष्म भाग से मन होता है। पाशुपत ब्राह्मणोपनिषद में कहा गया है-
अभक्षस्य निकृत्मा तु विशुध्द्ं हृदयं भवेत्।
आहारशुध्दौ चित्तस्य विशुद्धिर्भवति स्वतः॥
अर्थात् आहार में अभक्ष्य को त्याग देने से चित्त शुध्द हो जाता है। आहार शुध्द हो तो चित्त की शुध्दि स्वयंमेव हो जाती है। साधना का मुख्य आधार अन्न-शुध्दि को माना गया है। अर्थात् मन भी शरीर का एक भाग है। मन को ग्यारहवीं इंद्रिय भी कहते हैं। इसलिए शरीर की उन्नति-अवनति आहार पर ही निर्भर है। आहार शुध्द न हो तो शरीर में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं और उसके परिणाम स्वरूप मन भी अशुध्द हो सकता है।
वह शुद्ध आहार जो जीवंतता, ऊर्जा, स्वास्थ्य व प्रसन्नता में वृद्धि करे जो स्वादिष्ट, संपूर्ण, पुष्टिवर्द्धक व स्वीकार्य हो; सात्विक कहलाता है। इस भोजन में मन शांत व शुद्ध होता है जिससे एकात्मकता, संतुलन व शांति की प्रवृत्ति पैदा होती है। सात्विक भोजन से अधिकतम् ऊर्जा मिलती है, शक्ति में वृद्धि होती है व कड़े परिश्रम से होनेवाली थकान भी मिटती है। एक शांतिपूर्ण रवैया विकसित होता है व ध्यान के लिए प्रेरक बल मिलता है। जहां तक संभव हो सके भोजन ताजा व कुदरती होना चाहिए, यदि जैविक रूप से उगाया गया हो तो और भी बेहतर है। इसे संरक्षित व कृत्रिम तरीकों से न रखा गया हो। ऐसा भोजन, जहाँ तक हो सके- कच्चा, भाप में पका या हल्का पका, यानी कुदरती रूप से खाना चाहिए।
योगिक डाइट क्या है?
ऐसे खाद्य पदार्थ जो योग करने में आपकी मदद करते हैं और साथ ही आपको अध्यात्मिक बनाए रखने में मदद करते हैं, उसे योगिक डाइट कहते हैं। योग करने का प्राथमिक उद्देश्य मन को नियंत्रित करना होता है। गलत अभ्यास, आदत और गलत भोजन का सेवन हानिकारक हो सकता है ।
मिताहार : मिताहार का अर्थ सीमित आहार। जितना भोजन लेने की क्षमता है, उससे कुछ कम ही भोजन लेना और साथ ही भोजन में इस्तेमाल किए जाने वाले तत्व भी सीमित हैं तो यह मिताहार है। ध्यान रहे कि आपके भोजन में जई व साबुत अनाज से बनी रोटी शामिल हो। कच्चे खाद्य पदार्थों से दाँतों व मसूड़ों की मालिश होती है। और पाचन की प्रक्रिया दुरुस्त रहती है। अनाज से आवश्यक कार्बोहाइड्रेट मिलते हैं, ये शरीर के लिए ऊर्जा का प्रमुख स्रोत्र हैं । प्रोटीन हमारे शरीर का निर्माण करते हैं। सेहतमंद शाकाहरी भोजन में ऐसे खाघ पदार्थों का मिश्रण होना चाहिए, जिसमें प्रोटीन निर्माण के लिए पर्याप्त मात्रा में अमीनो एसिड भी शामिल हो। हरि सब्जियों का आहार में बहुत महत्त्व है। इनमें खनिज पदार्थ, विटामिन व रेशे पाए जाते हैं। आहार में बीजयुक्त सब्जियां; जैसे-जीरा, पत्तेदार सब्जियां, जड़ें व कंद-मूल शामिल करें। बेहतर होगा कि इन्हें कच्चा या हल्का पका कर खाएं।भोजन करते समय मन:स्थिति शांत और स्थिर रखिए। क्रोध, उत्तेजना, भय-विषाद की स्थिति में भोजन न करें।भोजन करते समय ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करें।
अपथ्यकारक भोजन :-अपथ्यकारक- योग के दौरान सेवन ना किया जाने वाला आहार । ऐसे भोजन से बचना चाहिए । इसके अलावा बने हुए खाने को पुन: गरम करके भी नहीं खाना चाहिए। अधिक नमक, खटाई आदि भी नहीं खाना चाहिए।
पथ्यकारक भोजन : योग साधकों द्वारा योगाभ्यास में शीघ्र सफलता प्राप्त करने के लिए कहा गया है कि भोजन पुष्टिकारक हो, सुमधुर हो, स्निग्ध हो, गाय के दूध से बनी चीजें हों, सुपाच्य हो तथा मन को अनुकूल लगने वाला हो। इस प्रकार के भोजन योग के अभ्यास को आगे बढ़ाने में सहायक तत्व होते हैं । ताजे, सूखे फल व ताजे फलों के रस, प्राचीन ऋषियों व राजयोगियों का आहार रहे हैं। विभिन्न खाद्य पदार्थों के बीच फलों का योगियों की भोजन-सूची में बहुत महत्त्व है। ताजे रसदार फलों का उपचारक प्रभाव आश्चर्यजनक होता है। वे जीवन को ऊर्जा, खनिज पदार्थ व रेशे प्रदान करते हैं। इनमें पाया जाने वाला एल्कलाइन (alkaline) रक्त को शुद्ध रखता है।
मसाले के तौर पर इनका प्रयोग अवश्य करें -: इनका एक गुण है कि इनका पाचन आसानी से होता है, स्वास्थ्य को भी लाभ होता है। मसाले तो असीमित हैं लेकिन उदाहरण के तौर पर इलायची, दालचीनी, धनिया, सौंफ, अदरक व हल्दी आदि।
लाल व काली मिर्च व लहसुन जैसे मसाले राजसिक व उत्तेजक माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ मसाले निर्जीव व तामसिक भी होते हैं। वैसे तो सात्विक भोजन में प्याज भी डाला जाता है किन्तु आप चाहें तो इनका प्रयोग न करें। आप इनकी बजाए हरा प्याज इस्तेमाल कर सकते हैं।
पैकेट के भोजन को करें अलविदा -:
पैकेट बन्द खाद्य पदार्थो को तैयार करने की प्रक्रिया कुछ इस तरह होती है कि इनके पौष्टिक गुण नष्ट हो जाते हैं। प्रिजरवेटिव्स और रंग की मिलावट के कारण आजकल समय से पहले अधेड़ दिखने की समस्या तेजी से हावी हो रही है, वहीं कैंसर जैसे घातक बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है।केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि एक दशक में आसानी से तैयार हो जाने वाले पैकेटबंद फूड के बाजार में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके साथ ही कूड़ेदान में प्लास्टिक का भी बोझ बढ़ा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की पॉल्यूशन मॉनिटरिंग लैबोरेटरी ने जुलाई से अक्टूबर 2019 के बीच देश में प्रचलित 33 भारतीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पैकेटबंद भोजन (जैसे चिप्स, नमकीन, इंस्टेंट नूडल्स, इंस्टेंट सूप) और फास्ट फूड (बर्गर, फ्राइज, पिज्जा, सैंडविच आदि) की जांच की
जिसमे चौकाने वाली जानकारी मिली इनमें जरूरत से ज्यादा नमक और वसा पाया गया इनकी जानकारी तक पैकेट पर छुपाई गयी । यदि आप सफर करते हुए कोई पैकेट खोलकर नमकीन चबाने लगें तो एक बार जरूर सोचें। आपने 35 ग्राम नमकीन खाया तो आप रोज के तय मानक का करीब 35 फीसदी नमक व 26 फीसदी वसा का उपभोग कर चुके हैं।
भोजन के बाद किया जाने वाला
भोजन के बाद किये जाने वाला योग आसान जो पाचन क्षमता को मजबूती प्रदान करता है :-
अधिकतर यौगिक क्रियाओं का अभ्यास खाली पेट ही करना चाहिए। वज्रासन का अभ्यास भोजन करने के बाद करने से पाचन तंत्र सशक्त होता है। वज्रासन में वज्र नाड़ी सक्रिय होती है। वज्र नाड़ी हमारे पूरे पाचन तंत्र को प्रभावित करती है। योगाभ्यास के आधे घंटे पश्चात ही कुछ खाना या पीना चाहिए। गहन ध्यान के एक घंटे पश्चात ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। कठिन प्राणायाम के अभ्यास के पौने घंटे बाद भोजन लेना चाहिए। इसी प्रकार, शंख प्रक्षालन क्रिया के अभ्यास के एक घंटे बाद भोजन लेना चाहिए तथा कुंजल क्रिया करने के आधे घंटे बाद कुछ खाना-पीना चाहिए। योगाभ्यास के पहले स्नान करना बेहतर होता है किन्तु योगाभ्यास करने के आधा घंटा बाद ही स्नान किया जा सकता है।
★सुबह की शुरुआत -:
खाली पेट नींबू पानी पीना होता है क्योंकि यह टॉक्सिक डाइट और एसिड को समाप्त करने में मदद करते हैं। इसके अलावा, नींबू पानी बेहद अल्कलाइन होता है और साथ ही यह आपके अंगों को डिटॉक्सीफाई करता है। आप इसमें हिमालयन सॉल्ट को शामिल कर के इसकी शक्ति को बढ़ा सकते हैं।
अंकुरित आहार के फायदे -: अंकुरित भोज्य पदार्थों के रूप में चना, मूंग, गेंहू, मक्का, तिल, मोठ, सोयाबीन, मूंगफली, मटर, दालों का प्रयोग होता है। इसके अलावा बाजरा, ज्वार, खजूर, किशमिश, बादाम आदि को भी अंकुरित करके खाया जाता है।मूंगदाल, छिलके वाली मूंगदाल , काला चना, काबुली चना सभी चीजों को आप एकसाथ भिगोकर अंकुरित कर सकते हैं । खड़े अनाज व दालों के अंकुरण से पोषक तत्वों खास तौर से विटामिन-सी, बी-कॉम्प्लेक्स, थायमिन, राइबोप्लेविन व नायसिन की मात्रा दोगुनी हो जाती है। अंकुरित आहार को नियमित तौर पर लेने से रोगप्रतिरोधक क्षतमा में इजाफा होता है । यह आपको उर्जावान बनाए रखने में बेहद कारगर साबित होता है।अंकुरित आहार में क्लोरोफिल, विटामिन ए, बी, सी, डी और के, भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम, आयरन, जैसे खनिजों लवणों का बेहतर स्त्रोत है।अंकुरित होने पर अनाज में पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज शर्करा में बदल जाता है जो को पाचन क्षमता को बढ़ाता है ।अंकुरण की प्रक्रिया के बाद अनाज में पाए जाने वाले कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक पाचक व पौष्टिक हो जाते हैं। अंकुरित अनाज में फाइबर भरपूर मात्रा में होता है,अंकुरित भोजन शरीर के हानिकारक तत्वों को बाहर कर देता है । त्वचा पर दिखाई देने वाले बढ़ती उम्र के निशान को भी अंकुरित आहार रोकता है। इसे कच्चा खाना चाहिए । अंकुरित अनाज आसानी से नहीं पचता है इसलिए इसे एकसाथ ज्यादा नहीं खाना चाहिए. यह नुकसान पहुंचा सकता है ।डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद होता है ।
लेखक योगाचार्य पं.मिलिन्द्र त्रिपाठी (MSC yog )