योग प्रदर्शन की विषय वस्तु नही है :- लेखक योगगुरु पं.मिलिन्द्र त्रिपाठी

योग प्रदर्शन की विषय वस्तु नही है :- 
लेखक योगगुरु पं.मिलिन्द्र त्रिपाठी 


योग दिखावा ,प्रदर्शन ,हीनभावना,भेदभाव  से परे होता है । आज का दौर दिखावे का प्रदर्शन का दौर है । कठिन कठिन आसानो को करना फिर उनका प्रदर्शन करते हुए फोटोशूट करवाना आम चलन बनता जा रहा है । योग के आरंभिक साधक भी यह जानते है कि योग में दिखावे और प्रदर्शन की आवश्यकता नही होती है । बल्कि योग में प्रदर्शन एवं दिखावे को वर्जित माना गया है । आजकल एक चलन ओर बढ़ गया है विश्व को योग, भारत की देन है परंतु विदेशी गुलामी की मानसिकता वाले कुछ लोग विदेशी योग साधकों के साथ फोटो खिंचवाने में अपने आपको धन्य समझने लगे है । वही कुछ एक कदम ओर आगे निकल कर विदेशों में जाकर योग की ट्रेनिंग ले रहे है फिर उसी ट्रेनिंग का सर्टिफिकेट दिखाकर सोशल मीडिया पर अपने आपको हीरो साबित करने में वो लगे रहते है । महर्षि पतंजलि के विभूतिपाद में सिद्धियों का वर्णन मिलता है, सिद्धि प्राप्त होना अर्थात साधना को कसौटी पर उतारना है, साधना के गहन प्रभाव का परिणाम सिद्धि होता है। लेकिन सिद्धि जब तक ही सिद्धि हैं जब तक साधक उसे प्रदर्शन के तौर पर प्रकट न करें । इसी सिद्धि को जब साधक आम मनुष्य के सामने प्रदर्शित करता है तो आम जन इसे चमत्कार मान लेते है । लेकिन सिद्धियों के प्रदर्शन से सिद्धियां क्षीण हो जाती है । कुछ लोग सिद्धियों से पैसा कमाने से भी पीछे नही हटते है । में उज्जैन का निवासी हूँ यहां सिहंस्थ (कुम्भ) का आयोजन प्रति 12 वर्ष में एक बार होता है तब कुछ बाबा अपनी सिद्धियों का प्रदर्शन आमजन के समक्ष करते है ।आम जन चमत्कृत होकर उन्हें रुपये चढ़ाकर जाते है । इस तरह सिद्धियों का प्रदर्शन आत्मज्ञान के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है । सिद्धियां लगातार अभ्यास एवं पूर्ण नियंत्रण से प्राप्त होती है लेकिन उसका प्रदर्शन अहंकार जाग्रत करता है जबकि योग हमे अहंकार से दूर ले जाता है । सामान्य भाषा मे कहे तो एक योग साधक नियमित योग का अभ्यास करता है उसे 5 साल हो जाते है वो कठिन से कठिन आसानो को आसानी से करने लगता है उसका स्व नियंत्रण मजबूत हो जाता है । उसे देखने वाले नए व्यक्ति को यह चमत्कार जैसा प्रतीत होता है । जबकि इसके पीछे लम्बी गहरी साधना को समझे बिना व्यक्ति सोचता है में भी इसी तरह के आसान थोड़े से अभ्यास से कर लूंगा तो ऐसा सोचना भी गलत है । योग का लक्ष्य अपने आपको चमत्कार करने वाला प्रदर्शित करना नही है बल्कि यह तो आत्म शान्ति का ओर स्वयं को ब्रह्म की आराधना में तल्लीन रखने का उपाय है ।योग न सिर्फ हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है, बल्कि वह हमें मानसिक रूप से भी मजबूत बनाता है। मन के नियंत्रण से ही योग मार्ग में आगे बढ़ा जा सकता है, इससे हमारी मानसिक बुराइयां दूर होती हैं।व्यक्ति का अहम्‌ 'मैं' का भाव जागृत होकर पतन होने लगता है,यह पतन का प्रारंभ है इससे बचने के लिए चमत्कार का प्रदर्शन से बचते हुए सिद्ध गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए अथवा ईश्वर की भक्ति में सिद्धि की शक्ति लगाना चाहिए,  चमत्कार में सिद्धि का प्रयोग नही करना चाहिए । प्रदर्शन और दिखावे से कोई लाभ नहीं होता और योगी का अहम्‌ बढ़कर उसकी साधना में विघ्न पैदा करते है । सामान्यतः देखा गया है सिद्धि का प्रदर्शन व्यक्ति दो कारणों से करता है एक प्रसिद्धि प्राप्त करने की लालसा से ओर एक आर्थिक लाभ प्राप्त करने की आशा से । दोनो ही स्थिति घातक है । जबकि सिद्धि प्राप्ति के बाद व्यक्ति को ओर अधिक नम्र होना चाहिए और मानव हित के कार्यो में अपने ज्ञान और सिद्धियों का उपयोग करना चाहिये । एक आदर्श योगी के लिए यह अत्यंत आवश्यक है को वो अपनी साधना एवं सिद्धियों को  प्रदर्शन न करें । आजकल का चलन सा बन गया है थोड़ा सा आसानो का ज्ञान मात्र प्राप्त करने वाले भी स्वयं को सिद्ध व्यक्ति समझने लगे है उनके लिए योग आय उपार्जन का साधन मात्र है । वही कुछ व्यक्तियों ने योग को मात्र आसानो तक ही समझकर उसी आधार पर अपना ज्ञान बांटना शुरू किया हुआ है जबकि योग सिर्फ आसान नही है योग का क्षेत्र विस्तृत है । सोशल मीडिया पर चंद दिनों में हम आपकीं यह बीमारी इस आसान से ठीक कर देंगे ऐसा विज्ञापन भी आपने देखा होगा यह झूठ मात्र है और विज्ञापन को आकर्षक बनाने के लिए आपके समक्ष परोसा जा रहा है योग के नियमित अभ्यास ओर संतुलित दिनचर्या के पालन से ही आप स्वास्थ्य जीवन जी सकते है । 


लेखक योगगुरु पं.मिलिन्द्र त्रिपाठी