जान है तो जहांन है !


"जान है तो जहान है !"

भूख अच्छे अच्छे इन्शान को तोड़ देती है 
फिर दुनिया भी साथ छोड़ देती है 
रोता रहे तो कोई कद्र न करे 
मर जाये तो दुनिया फ्री में कब्र खोद देती है !
ये महंगाई किशान की जान ले लेगी 
ये महंगाई देश की शान ले लेगी 
भूख से कोई मर भी जाये 
तो ये सरकार मौत का इनाम दे देगी !
अपनों को पैसा बाटें जा रहे 
देश को लूटे जा रहे 
मत बोलना पता नही था 
न मर्दों से ही जिये जा रहे !

देश सो गया है चद्दर तान कर 
आरक्षण का भीख मांग कर 
विदेशी के तलवे चाटे जाओ 
सीना तान कर !
और इसे अपनी तक़दीर मान कर !

अब जाग जा सुबह हो गई
कब तक सोयेगा भाई जिन्दंगी नरक सी हो गई ! 
लगता है जनता फिर सो गई !
ओफ्ह्ह ये तो सपनो में खों गई !

"मिलिन्द्र त्रिपाठी "
जाने माने कवि और लेखक "मिलिन्द्र त्रिपाठी "की एक अनूठी रचना ये इस रचना का एक भाग है !अन्य भाग के लिये इन्तजार करें!