कोई कह दे कब काशी ने कावा कीदीवारें तोड़ी,
हमने कब मक्का में जाकर मस्जिद या मीनारें तोड़ी,
तुम खूब कुराने पढो किन्तु हमको भी वेद पढ़ाने दो,
चन्दा से बैर नहीं लेकिन सूरज को अर्ग चढाने दो,
पर अपनी धर्मसुरक्षा में सूरज की आग नहा लेंगें,
गंगा को पड़ी जरूरत यदि शोणित की नदी बहा देंगे,
हम सागर हैं पर मत भूलो बलबावन बनकर तपते हैं,
बर्फीली परतों में भी लपटों वाले वंश पनपते हैं,
तो साफ़ बता दूंअब हिंसक हर लहरमोड़ दी जाएगी,
क्रान्तिग्रंथमें एक कहानी औरजोड़ दी जाएगी,
जो उपवन पर घात करे वो शाख तोड़दी जाएगी,
जन्मभूमि पर उठी हुई हर आँख फोड़ दी जाएगी!
"मिलिन्द्र त्रिपाठी "
बर्फीली परतों में भी लपटों वाले वंश पनपते हैं,
तो साफ़ बता दूंअब हिंसक हर लहरमोड़ दी जाएगी,
क्रान्तिग्रंथमें एक कहानी औरजोड़ दी जाएगी,
जो उपवन पर घात करे वो शाख तोड़दी जाएगी,
जन्मभूमि पर उठी हुई हर आँख फोड़ दी जाएगी!
"मिलिन्द्र त्रिपाठी "